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Tuesday, 11 April 2017

ठाठ पत्तों के उजड़ रहे है

टूटकर फूल शाखों से झड़ रहे है
ठाठ जर्द पत्तों के उजड़ रहे है

भटके परिंदे छाँव की तलाश में
नीड़ो के सीवन अब उधड़ रहे है

अंजुरी में कितनी जमा हो जिंदगी
बूँद बूँद पल हर पल फिसल रहे है

ख्वाहिशो की भीड़ से परेशान दिल
और हसरत आपस में लड़ रहे है

राह में बिछे फूल़ो का नज़ारा है
फिर आँख में काँटे कैसे गड़ रहे है

       #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...