मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday 11 December 2019
मोह-भंग
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भोर का ललछौंहा सूरज, हवाओं की शरारत, दूबों,पत्तों पर ठहरी ओस, चिड़ियों की किलकारी, फूल-कली,तितली भँवरे जंगल के चटकीले रंग; ...
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Thursday 5 December 2019
सौंदर्य-बोध
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दृष्टिभर प्रकृति का सम्मोहन निःशब्द नाद मौन रागिनियों का आरोहण-अवरोहण कोमल स्फुरण,स्निग्धता रंग,स्पंदन,उत्तेजना, मोहक प्रत...
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Monday 2 December 2019
गाँव शहर हो जाते हैं
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सभ्यताएँ करती हैं बग़ावत परंपराओं की ललकार में भूख हार मान जाती है सोंधी माटी से तकरार में रोटी की आस में जुआ उतार गमछे में कुछ बाँ...
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Friday 29 November 2019
कब तक...?
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फिर से होंगी सभाएँ मोमबत्तियाँ चौराहों पर सजेंगी चंद आक्रोशित नारों से अख़बार की सुर्खियाँ फिर रंगेंगी हैश टैग में स...
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Tuesday 26 November 2019
ग़ुलाम
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चित्र: साभार गूगल ------ बेबस, निरीह,डबडबाई आँखें नीची पलकें,गर्दन झुकाये भींचे दाँतों में दबाये हृदय के तूफां घसीटने को मजबू...
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Saturday 23 November 2019
परदेशी पाहुन
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चित्र:साभार गूगल (१)★★★★★★ अपनी जड़ों में वापस लौटने का, स्वप्न परों में बाँधे आते हैं परदेशी नवजीवन की चाह में आस की डो...
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Thursday 21 November 2019
संस्कार संक्रमण
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हाय! हम क्यों नहीं सोच रहे? अपने भविष्य की सीढ़ियों को अपने आने वाली पीढियों को कैसी धरोहर हम सौंप रहे? धर्म और शिक्षा में रा...
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Sunday 17 November 2019
मैं भूल जाना चाहती हूँ
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भुलक्कड़ रही सदा से बचपन से ही कभी याद न रख सकी सहेज न सकी कोई कड़ुवाहट सखियों से झगड़ा सगे या चचेरे-ममेरे भाई बहनों से तीखी तकरार ...
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