मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 27 April 2017
तुम
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ज़िदगी के शोर में खामोश सी तन्हाई तुम चिलचिलाती धूप में मस्ती भरी पुरवाई तुम भोर की पहली याद मेरी दुपहरी की प्यास स्वप्निल शाम की नशील...
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Wednesday, 26 April 2017
कुछ पल तुम्हारे साथ
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मीलों तक फैले निर्जन वन में पलाश के गंधहीन फूल मन के आँगन में सजाये, भरती आँचल में हरसिंगार, अपने साँसों की बातें सुनती धूप को सुखात...
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Tuesday, 25 April 2017
कहाँ छुपा है चाँद
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साँझ से देहरी पर बैठी रस्ता देखे चाँद का एक एक कर तारे आये न दीखे क्यूँ चंदा जाने क्या अटका है पर्वत पीछे या लटका पीपल नीचे बादल के...
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श्वेत श्याम मनोभाव
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आत्म मंथन के क्षण में विचारों के विशाल वन में, दो भाग में बँटा मन पाया चाहकर भी जुट नहीं पाया, एक धरा से पड़ा मिला दूजा आसमां में उड़...
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Monday, 24 April 2017
तुम ही तुम हो
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मुस्कुराते हुये ख्वाब है आँखों में महकते हुये गुलाब है आँखों में बूँद बूँद उतर रहा है मन आँगन एक कतरा माहताब है आँखों में उनकी बा...
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गुम होता बचपन
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ज़िदगी की शोर में गुम मासूमियत बहुत ढ़ूँढ़ा पर गलियों, मैदानों में नज़र नहीं आयी, अल्हड़ अदाएँ, खिलखिलाती हंसी जाने किस मोड़ पे हाथ छोड़...
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Sunday, 23 April 2017
जीवन व्यर्थ नहीं हो सकता
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हर रात नींद की क्यारी में बोते है चंद बीज ख्वाब के कुछ फूल बनकर मुस्कुराते है कुछ दफ्न होकर रह जाते है बनते बिगड़ते ज़िदगी के राह में ...
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Saturday, 22 April 2017
धरती बचाओ
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जनम मरण का खेल तमाशा सुख दुख विश्वास अविश्वास प्रेम क्रोध सबका संगम है कर्मभूमि सबके जीवन की धरती माँ का यही अँचल है नहीं किसी से कर...
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