मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 6 May 2017
कुछ पल सुकून के
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गहमा-गहमी ,भागम भाग अचानक से थम गयी जैसे....घड़ी की सूईयों पर टिकी भोर की भागदौड़....सबको हड़बड़ी होती है...अपने गंतव्य पर समय पर पहुँ...
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Thursday, 4 May 2017
तुम बिन
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जलते दोपहर का मौन अनायास ही उतर आया भर गया कोना कोना मन के शांत गलियारे का कसकर बंद तो किये थे दरवाज़े मन के, फिर भी ये धूप अंदर तक ...
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Wednesday, 3 May 2017
सज़ा
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दस्तूर ज़माने की तोड़ने की सज़ा मिलती है बेहद चाहने मे, तड़पने की उम्रभर दुआ मिलती है ज़मीं पर रहकर महताब को ताका नहीं करते जला जाती है च...
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भावों में बहना छोड़ दे
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पत्थरों के शहर में रहना है गर आईना बनने का सपना छोड़ दे बदल गये है काँटों के मायने अब साथ फूलों के तू खिलना छोड़ दे या खुदा दिल बना प...
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Tuesday, 2 May 2017
शहीदों के लिए
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कडी़ निंदा करने का अच्छा दस्तूर हो गया कब समझोगे फिर से बेटा माँ से दूर हो गया रोती बेवाओं का दर्द कोई न जान पाया और वो पत्थरबाज देश ...
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Monday, 1 May 2017
ख्वाहिशों का पंछी
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बरसों से निर्विकार, निर्निमेष,मौन अपने पिंजरे की चारदीवारियों में कैद, बेखबर रहा, वो परिंदा अपने नीड़ में मशगूल भूल चुका था उसके पास...
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Sunday, 30 April 2017
तुम्हारा एहसास
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जाने क्यूँ अवश हुआ जाता है मन खींचा जा रहा तुम्हारी ओर बिन डोर तितलियों के रंगीन पंखों पर उड़ता विस्तृत आसमां पर तुम्हें छूकर आ...
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Thursday, 27 April 2017
तुम
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ज़िदगी के शोर में खामोश सी तन्हाई तुम चिलचिलाती धूप में मस्ती भरी पुरवाई तुम भोर की पहली याद मेरी दुपहरी की प्यास स्वप्निल शाम की नशील...
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