मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 17 June 2017
मौन
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बस शब्दों के मौन हो जाने से न बोलने की कसम खाने से भाव भी क्या मौन हो जाते है?? नहीं होते स्पंदन तारों में हिय के एहसास भी क्या मौन ह...
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Friday, 16 June 2017
एक बार फिर से
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मैं ढलती शाम की तरह तू तनहा चाँद बन के मुझमे बिखरने आ जा बहुत उदास है डूबती साँझ की गुलाबी किरणें तू खिलखिलाती चाँदनी बन मुझे आगोश ...
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Thursday, 15 June 2017
पापा
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पापा,घने, विशाल वट वृक्ष जैसे है जिनके सघन छाँह में, हम बनाते है बेफ्रिक्र होकर कच्चे पक्के जीवन के घरौंदे और बुनियाद में रखते है उनक...
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Wednesday, 14 June 2017
तेरी तलबदार
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तन्हाई मेरी बस तेरी ही तलबदार है दिल मेरा तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार है तेरे चेहरे पे उदासी के निशां न हो आँख़े तुम्हारी मुस्कां की त...
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Tuesday, 13 June 2017
भँवर
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स्याह रात की नीरवता सी शांत झील मन में तेरे ख्यालों के कंकर हलचल मचाते है एक एक कर गिरते जल को तरंगित करते लहरें धीरे धीरे तेज होती...
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तुम्हारे लिए
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ज़हन के आसमान पर दिनभर उड़ती रहती, ढूँढ़ती रहती कुछपल का सुकून, बेचैन ,अवश, तुम्हारी स्मृतियों की तितलियाँ बादलों को देख मचल उठती संग म...
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Monday, 12 June 2017
कुछ बात होती
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बहुत लंबी है उम्र, चंद लम्हों में ,सिमट जाती तो कुछ बात होती मेरी ख़्वाहिश है तू, कुछ पल को,मिल जाती तो कुछ बात होती रातें महकती है चा...
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Sunday, 11 June 2017
हिय के पीर
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माने न मनमोहना समझे न हिय के पीर विनती करके हार गयी बहे नयन से नीर खड़ी गली के छोर पे बाट निहारे नैना अबहुँ न आये साँवरे बेकल जिया अधी...
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