मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Saturday, 25 November 2017
रात
›
सर्द रात के नम आँचल पर धुँध में लिपटा तन्हा चाँद जाने किस ख़्याल में गुम है झीनी चादर बिखरी चाँदनी लगता है किसी क...
41 comments:
Friday, 24 November 2017
शाम
›
शाम --- उतर कर आसमां की सुनहरी पगडंडी से छत के मुंडेरों के कोने में छुप गयी रोती गीली गीली शाम कुछ बूँदें छितराकर तुलसी के चौबारे...
13 comments:
Tuesday, 21 November 2017
एक लड़की.......कथा काव्य
›
सारी दुनिया से छुप- छुपकर वो ख़ुद से बातें करती थी नीले नभ में चिड़ियों के संग बहुत दूर उड़ जाती थी बना के मेघों का घरौंदा हवा में ही...
41 comments:
Monday, 20 November 2017
पत्थर के शहर में
›
पत्थर के शहर में शीशे का मकान ढूँढ़ते हैं। मोल ले जो तन्हाइयाँ ऐसी एक दुकान ढूँढ़ते हैं।। हर बार खींच लाते हो ज़मीन पर ख़्वाबों स...
34 comments:
Sunday, 19 November 2017
दो दिन का इश्क़
›
मेरी तन्हाइयों में तुम्हारा एहसास कसमसाता है, तुम धड़कनों में लिपटे हो मेरी साँसें बनकर। बेचैन वीरान साहिल पे बिखर...
33 comments:
Thursday, 16 November 2017
ख्याल
›
साँझ की गुलाबी आँखों में, डूबती,फीकी रेशमी डोरियों के सिंदूरी गुच्छे, क्षितिज के कोने के स्याह कजरौटे में समाने लगे, द...
23 comments:
Tuesday, 14 November 2017
चकोर
›
सम्मोहित मन निमग्न ताकता है, एकटुक झरोखे से मुंडेर की अलगनी पर बेफिक्र लटके अभ्रख के टुकड़े से चमकीले चाँद को, पिघलती चा...
31 comments:
Monday, 13 November 2017
किन धागों से सी लूँ बोलो
›
मैं कौन ख़ुशी जी लूँ बोलो। किन अश्क़ो को पी लूँ बोलो। बिखरी लम्हों की तुरपन को किन धागों से सी लूँ बोलो। पलपल हरपल इन श्वासों से...
33 comments:
‹
›
Home
View web version