मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 5 January 2018
आज फिर.....
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आज फिर किरिचियाँ ज़िंदगी की तन्हाई में भर गयीं। कुछ अधूरी ख़्वाहिशों की छुअन से चाहतें सिहर गयीं।। लाख़ कोशिशों के बावजूद तुम ख़...
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Wednesday, 3 January 2018
तुम्हारा ख़्याल
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गहराते रात के साये में सुबह से दौड़ता-भागता शहर थककर सुस्त क़दमों से चलने लगा जलती-बुझती तेज़ -फीकी दूधिया-पीली रोशनी के जगमगात...
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Sunday, 31 December 2017
नववर्ष
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रात की बोझिल उदासी को किरणों की मुस्कान से खोलता शीत का दुशाला ओढ़े क्षितिज के झरोखे से झाँकता बादलों के पंख पर उड़कर हौले-हौले ...
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Friday, 29 December 2017
नन्ही ख़्वाहिश
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एक नन्ही ख़्वाहिश चाँदनी को अंजुरी में भरने की, पिघलकर उंगलियों से टपकती अंधेरे में ग़ुम होती चाँदनी देखकर उदास रात के दामन...
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Tuesday, 26 December 2017
बदलते साल में....
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सोचते हैं इस नये साल में क्या बदल जाएगा....? तारीख़ के साथ किसका हाल बदल जाएगा। सूरज,चंदा,तारे और फूल ...
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Saturday, 23 December 2017
लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे..
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अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे। दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।। पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम। उम्रे-रवाँ के ख़्व...
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Friday, 22 December 2017
सूरज तुम जग जाओ न
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धुँधला धुँधला लगे है सूरज आज बड़ा अलसाये है दिन चढ़ा देखो न कितना क्यूँ.न ठीक से जागे है छुपा रहा मुखड़े को कैसे ज्यों रजाई स...
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Saturday, 16 December 2017
विधवा
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नियति के क्रूर हाथों ने ला पटका खुशियों से दूर, बहे नयन से अश्रु अविरल पलकें भींगने को मजबूर। भरी कलाई,सिंदूर की रेखा है चौ...
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