मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 26 January 2018
पुस्तक समीक्षा:प्रिज़्म से निकले रंग
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पुस्तक समीक्षा काव्य संग्रह-प्रिज़्म से निकले रंग कवि - रवीन्द्र सिंह यादव प्रकाशक - ऑन लाइन गाथा मूल...
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Wednesday, 24 January 2018
गणतंत्र यानि...
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चलो फिर से देशभक्ति की रस्म़ अदा करते है जश्न एक दिन की छुट्टी का जैसे सदा करते है देशभक्ति के गाने सुने झंडा फ़हरते देखे लाइव ...
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Saturday, 20 January 2018
बसंत
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भाँति-भाँति के फूल खिले हैं रंग-बिरंगी लगी फुलवारी। लाल,गुलाबी,हरी-बसंती महकी बगिया गुल रतनारी।। स्वर्ण मुकुट सुरभित वन उपवन ...
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Wednesday, 17 January 2018
बवाल
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खुल के कह दी बात दिल की तो बवाल लिख दिये जो ख़्वाब दिल के तो बवाल इधर-उधर से ढ़ूँढते हो रोज़ क़िस्से इश्क़ के हमने लफ़्ज़ों में बयां ...
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Friday, 12 January 2018
तेरे नेह में
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तुमसे मिलकर कौन सी बातें करनी थी मैं भूल गयी शब्द चाँदनी बनके झर गये हृदय मालिनी फूल गयी मोहनी फेरी कौन सी तुमने डोर न जाने कैसा ब...
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Tuesday, 9 January 2018
अंकुराई धरा
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धूप की उंगलियों ने छू लिया अलसाया तन सर्द हवाओं की शरारतों से तितली-सा फुदका मन तन्वंगी कनक के बाणों से कट गये कुहरीले पा...
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Friday, 5 January 2018
आज फिर.....
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आज फिर किरिचियाँ ज़िंदगी की तन्हाई में भर गयीं। कुछ अधूरी ख़्वाहिशों की छुअन से चाहतें सिहर गयीं।। लाख़ कोशिशों के बावजूद तुम ख़...
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Wednesday, 3 January 2018
तुम्हारा ख़्याल
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गहराते रात के साये में सुबह से दौड़ता-भागता शहर थककर सुस्त क़दमों से चलने लगा जलती-बुझती तेज़ -फीकी दूधिया-पीली रोशनी के जगमगात...
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