मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 10 May 2018
जफ़ा-ए-उल्फ़त
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पूछो न बिना तुम्हारे कैसे सुबह से शाम हुई पी-पीकर जाम यादों के ज़िंदगी नीलाम हुई दर्द से लबरेज़ हुआ ज़र्रा-ज़र्रा दिल का लड़खड़ाती हर ...
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Sunday, 6 May 2018
कहानी अधूरी,अनुभूति पूरी -प्रेम की
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उम्र के बोझिल पड़ाव पर जीवन की बैलगाड़ी पर सवार मंथर गति से हिलती देह बैलों के गलेे से बंधा टुन-टुन की आवाज़ में लटपटाया हुआ मन ...
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Friday, 4 May 2018
आत्मबोध
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हर शाम सूरज की बोझिल फीकी बाहें स्याह क्षितिज में समाने के पहले छूकर मेरी आँखों को उदास कर जाती है गहरे नीले नभ पर छाय...
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Sunday, 22 April 2018
अस्तित्व के मायने
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बड़ी हसरत से देखता हूँ वो नीला आसमान जो कभी मेरी मुट्ठी में था, उस आसमान पर उगे नन्हें सितारों की छुअन से किलकता था मन कोमल ...
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Friday, 20 April 2018
क़दमों की आहट
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साँझ की राहदारी में क्षितिज की स्याह आँखों में गुम ख़्यालों की सीढियों पर बैठी याद के क़दमों की आहट टटोलती है। आसमां की ख़ामोश बस...
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Monday, 16 April 2018
मत लिखो प्रेम कविताएँ
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मत लिखो प्रेम कविताऐं महसूस होती प्रेम की अनुभूतियों को हृदय के गोह से निकलते उफ़नते भावों के मुख पर रख दो संयम का भारी पत्थर ...
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Saturday, 7 April 2018
उड़ान भरें
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चलो बाँध स्वप्नों की गठरी रात का हम अवसान करें नन्हें पंख पसार के नभ में फिर से एक नई उड़ान भरेंं बूँद-बूँद को जोड़े बादल धर...
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Tuesday, 3 April 2018
आरक्षण
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आरक्षण के नाम पर घनघोर मचा है क्लेश अधिकारों के दावानल में पल-पल सुलगता देश लालच विशेषाधिकार का निज स्वार्थ में भ्रमित हो ...
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