मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 22 June 2018
आख़िर कब तक?
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आखिर कब तक? एक मासूम दरिंदगी का शिकार हुई यह चंद पंक्तियों की ख़बर बन जाती है हैवानियत पर अफ़सोस के कुछ लफ़्ज़ अख़बार की सुर्ख़ी होक...
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Thursday, 21 June 2018
ख़्वाब में ही प्यार कर..
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मैं ख़्वाब हूँ मुझे ख़्वाब में ही प्यार कर पलकों की दुनिया में जीभर दीदार कर न देख मेरे दर्द ऐसे बेपर्दा हो जाऊँगी न गिन ज़ख़्म दिल के,...
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Saturday, 16 June 2018
चाँद हूँ मैं
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मैं चाँद हूँ आसमाँ के दामन से उलझा बदरी की खिड़कियों से झाँकता चाँदनी बिखराता हूँ मुझे न काटो जाति धर्म की कटार से मैं शाश्वत...
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पापा
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जग सरवर स्नेह की बूँदें भर अंजुरी कैसे पी पाती बिन " पापा " पीयूष घट आप सरित लहर में खोती जाती प्लावित तट पर बिना पात्...
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Tuesday, 12 June 2018
अच्छा नहीं लगता
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अश्कों का आँख से ढलना हमें अच्छा नहीं लगता तड़पना,तेरा दर्द में जलना हमें अच्छा नहीं लगता भिगाती है लहर आकर, फिर भी सूखा ये मौसम ...
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Saturday, 9 June 2018
भरा शहर वीराना है
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पहचाने चेहरे हैं सारे क्यूँ लगता अंजाना है। उग आये हैं कंक्रीट वन भरा शहर वीराना है। बहे लहू जिस्मों पे ख़ंजर न दिखलाओ ऐसा म...
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Monday, 4 June 2018
विनाश की आहट
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5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर फिर से एक बार प्रभावशाली स्लोगन जोर-जोर से चिल्लायेगे,पेड़ों के संरक्षण के भाषण,बूँद-बूँद पानी की कीमत पहचान...
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Saturday, 2 June 2018
कौन सा रूप तुम्हारा?
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लिलार से टपकती पसीने की बूँद अस्त-व्यस्त बँधे केश का जूड़ा हल्दी-तेल की छींटे से रंगा हरा बाँधनी कुरता एक हाथ में कलछी और द...
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