मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 30 June 2018
नागार्जुन
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ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा का चंद्र साहित्य जगत में उदित लेखनी के ओज से और अपने व्यक्तित्व के बेबाकीपन से संपूर्ण जगत को प्रभावित करने ...
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Wednesday, 27 June 2018
गीत सुनो
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दुःख,व्यथा,क्षोभ ही नहीं भरा बस विरह, क्रोध ही नहीं धरा मकरंद मधुर उर भीत सुनो जीवन का छम-छम गीत सुनो ज्वाला में जल मिट जाओगे...
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Monday, 25 June 2018
एकांत का उत्सव
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नभ के दालान से पहाड़ी के कोहान पर फिसलकर क्षितिज की बाहों में समाता सिंदुरिया सूरज, किरणों के गुलाबी गुच्छे टकटकी बाँधें पेड़...
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Friday, 22 June 2018
आख़िर कब तक?
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आखिर कब तक? एक मासूम दरिंदगी का शिकार हुई यह चंद पंक्तियों की ख़बर बन जाती है हैवानियत पर अफ़सोस के कुछ लफ़्ज़ अख़बार की सुर्ख़ी होक...
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Thursday, 21 June 2018
ख़्वाब में ही प्यार कर..
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मैं ख़्वाब हूँ मुझे ख़्वाब में ही प्यार कर पलकों की दुनिया में जीभर दीदार कर न देख मेरे दर्द ऐसे बेपर्दा हो जाऊँगी न गिन ज़ख़्म दिल के,...
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Saturday, 16 June 2018
चाँद हूँ मैं
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मैं चाँद हूँ आसमाँ के दामन से उलझा बदरी की खिड़कियों से झाँकता चाँदनी बिखराता हूँ मुझे न काटो जाति धर्म की कटार से मैं शाश्वत...
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पापा
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जग सरवर स्नेह की बूँदें भर अंजुरी कैसे पी पाती बिन " पापा " पीयूष घट आप सरित लहर में खोती जाती प्लावित तट पर बिना पात्...
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Tuesday, 12 June 2018
अच्छा नहीं लगता
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अश्कों का आँख से ढलना हमें अच्छा नहीं लगता तड़पना,तेरा दर्द में जलना हमें अच्छा नहीं लगता भिगाती है लहर आकर, फिर भी सूखा ये मौसम ...
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