मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 18 August 2018
भावों का ज्वार
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गहराती , ढलती शाम और ये तन्हाई बादलों से चू कर नमी पलकों में भर आई। गीला मौसम, गीला आँगन, गीला मन मतवारा संझा-बाती,...
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Tuesday, 14 August 2018
आज़ादी
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अभी मैं कैसे जश्न मनाऊँ,कहाँ आज़ादी पूरी है, शब्द स्वप्न है बड़ा सुखद, सच को जीना मजबूरी है। आज़ादी यह बेशकीमती, भेंट किया हमें वीरों ने...
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Sunday, 12 August 2018
दृग है आज सजल
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मौन हृदय की घाटी में दिवा सांझ की पाटी में बेकल मन बौराया तुम बिन पल-पल दृग है आज सजल मन के भावों को भींचता पग पीव छालों क...
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Wednesday, 8 August 2018
अजीर्णता नदियों की
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देखते-देखते जलधारा ने लिया रुप विकराल लील गयी पग-पग धरती का जकड़ा काल कराल तट की चट्टानों से टकरा विदीर्ण जीवन पोत हुआ...
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Tuesday, 31 July 2018
क़लम के सिपाही
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क़लम के सिपाही, जाने कहाँ तुम खो गये? है ढूँढती लाचार आँख़ें सपने तुम जो बो गये अन्नदाता अन्न को तरसे मरते कर्ज और भूख से ...
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Sunday, 29 July 2018
क्यूँ जीते जाते
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ब्रह्मांड में धरा का जन्म धरा पर जीवन का अंकुरण प्रकृति के अनुपम उपहारों का क्यूँ मान नहीं कर पाते हैं? जीवन को प्रारब्ध से ज...
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Monday, 23 July 2018
बरखा
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श्यामल नभ पर अंखुआये कारे-कारे बदरीे गाँव फूट रही है धार रसीली सुरभित है बरखा की छाँव डोले पात-पात,ब...
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Wednesday, 18 July 2018
मेरा मन
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ये दर्द कसक दीवानापन ये उलझा बिगड़ा तरसता मन दुनिया से उकताकर भागा तेरे पहलू में आ सुस्ताता मन दो पल को तुम मेरे साथ रहो ...
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