मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Sunday, 14 October 2018
मन उलझन
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एकाकीपन की बेला में हिय विरहन-सा गाता है धागे भावों के न सुलझे मन उलझन में पड़ जाता है जीवन का गणित सरल नहीं चख अमृत घट बस ...
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Wednesday, 10 October 2018
अनुभूति
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माँ का ध्यान हृदय सदा शान्ति सुधा बरसाती मलयानिल श्वासों में घुल हिया सुरभित कर जाती मौन मगन दैदीप्त पुंज मन भाव विह्वल खो ...
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Saturday, 6 October 2018
जीवन रण में
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कुरुक्षेत्र के जीवन रण में गिरकर फिर चलना सीखो कंटक राहों के अनगिन सह छिलकर भी पलना सीखो लिए बैसाखी बेबस बनकर कुछ पग में ...
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Sunday, 30 September 2018
गहरा रंग
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उँघती भोर में चिड़ियों के कलरव के साथ आँखें मिचमिचाती ,अलसाती चाय की महक में घुली किरणों की सोंधी छुअन पत्तों ,फूलों,दूबों पर...
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Thursday, 27 September 2018
तुम खुश हो तो अच्छा है
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मन दर्पण को दे पत्थर की भेंट तुम खुश हो तो अच्छा है मुस्कानों का करके गर आखेट तुम खुश हो तो अच्छा है मरु हृदय में ढूँढता छाय...
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Saturday, 22 September 2018
तृष्णा
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मदिर प्रीत की चाह लिये हिय तृष्णा में भरमाई रे जानूँ न जोगी काहे सुध-बुध खोई पगलाई रे सपनों के चंदन वन महके चंचल पाखी मधु...
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Wednesday, 19 September 2018
समुंदर
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मोह के समुंदर में डूबता उतराता मन छटपटाती लहर भाव की वेग से आती आहृलादित होकर किलकती,शोर मचाती बहा ले जाना चाहती है अपनी म...
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Sunday, 9 September 2018
मितवा मेरे
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हिय की हुकहुक सुन जा रे ओ बेदर्दी मितवा मेरे जान के यूँ अनजान न बन ओ निर्मोही मितवा मेरे माना कि तेरे सपनों की, सुंदर तस्...
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