मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday, 27 March 2019
स्वयंसिद्ध
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धधकते अग्निवन के चक्रव्यूह में समर्पित देती रहीं प्रमाण अपनी पवित्रता का सीता,अहिल्या,द्रौपदी गांधारी,कुंती, और भी असंख्य ...
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Tuesday, 26 March 2019
झुर्रियाँ
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बलखाती साँस की ताल पर अधरों के राग पर हौले-हौले थिरकती सुख-दुख की छेनी और समय की हथौड़ी के प्रहार से बनी महीन, गहरी, ...
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Friday, 22 March 2019
जल
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हाँ,मैंने महसूस किया है अंधाधुंध दोहन,बर्बादी से घबराकर,सहमकर चेतावनी अनसुना करते स्वार्थी मानवों के अत्याचार से पीड़ित पात...
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Tuesday, 19 March 2019
होली
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पी छवि नयन में आते ही मुखड़ा हुआ अबीर-सा फूटे हरसिंगार बदन पे चुटकी केसर क्षीर-सा पहन रंगीली चुनर रसीली वन पलाश के इतराये ...
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Wednesday, 13 March 2019
जीवन-चक्र
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निर्जीव,बिखरते पत्तों की खड़खडाहट पर अवश खड़ा शाखाओं का कंकाल पहने पत्रविहीन वृक्ष जिसकी उदास बाहें ताकती हैं सूखे नभ का ...
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Friday, 8 March 2019
स्त्री:वैचारिकी मंथन
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गोरी,साँवली,गेहुँआ,काली मोटी,छोटी,दुबली,लम्बी, सुंदर,मोहक,शर्मीली,गठीली लुभावनी,मनभावनी,गर्वीली कर्कशा,कड़वी,कंटीली विविध सं...
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Wednesday, 6 March 2019
उम्मीदें
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ऐ दिल, यही ज़िंदगी है समझ ले भरम हैं ख़्वाब, सच है टूटती उम्मीदें छू भी नहीं पाते, जमीं के जलते पाँव, दरख़्तों से साय...
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Sunday, 3 March 2019
उद्देश्य
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पूछती हूँ काल के चक्रों को छू है जन्म क्यों और जन्म का उद्देश्य क्या? हूँ खिलौना ईश का तन का बदलता रुप मैं आना-जाना पल ...
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