मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 27 April 2019
धूप
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तमतमाते धूप का बेरंग चेहरा देख बालकनी के गमलों में खिलखिलाते गुलाब,बेली,सदाबहार के फूल सहम गये,गर्दन झुकाये, बैठक की काँ...
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Wednesday, 24 April 2019
पुकार
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पृथ्वी दिवस पर मेरी एक रचना पत्रिका लोकजंग में- पुकार --- पेड़ों का मौन रुदन सुनो अनसुना करो न तुम साथी हरियाली खो जायेगी ...
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Tuesday, 23 April 2019
धरती
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हरी-भरी,फलती-फूलती गर्भिणी धरती की उर्वर कोख़ उजाड़कर बंजर नींव में रोप रहे हम भावी पीढ़ियों के लिए रेतीला भविष्य। नभ से ...
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Sunday, 21 April 2019
अमलतास
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अप्रैल माह के तीसरे सप्ताह की एक सुबह पार्क के कोने में मौन तपस्वी-सा खड़े अमलतास के पेड़ पर फूटते पीले फूलों में आँखें उलझ गयीं। प...
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Thursday, 18 April 2019
मैं समाना चाहती हूँ
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मैं होना चाहती हूँ वो हवा, जो तुम्हारी साँसों में घुलती है हरपल जीवन बनकर निःशब्द! जाड़ों की गुनगुनी धूप, गर्मियो...
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Tuesday, 16 April 2019
गर्मी के दिन
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राग-रंग बदला मौसम का बदले धूप के तेवर रुई धुन-धुन आसमान के उड़ गये सभी कलेवर सूरज की पलकें खुलते ही लाजवंती बने पेड़ विशाल ...
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Friday, 12 April 2019
मैं रहूँ या न रहूँ
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कभी किसी दिन तन्हाई में बैठे अनायास ही मेरी स्मृतियों को तुम छुओगे अधरों से झरती कोमल चम्पा की कलियों को समेटकर अँजुरी ...
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Monday, 8 April 2019
मन
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(१) जीवन के बेढब कैनवास पर भावों की कूची से उम्रभर उकेरे गये चेहरों के ढेर में ढूँढ़ती रही एहसास की खुशबू धूप ,हवा ,पानी, ज...
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