मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 3 May 2019
तुम
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चुप रहूँ तो शायद दिल तेरा ख़ुशलिबास हो दुआ हर लम्हा,खुश रहे तू न कभी उदास हो तुम बिन जू-ए-बेकरार,हर सिम्त तलब तेरी करार आता नह...
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Wednesday, 1 May 2019
मज़दूर
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मज़दूर का नाम आते ही एक छवि ज़ेहन में बनती है दो बलिष्ठ भुजाएँ दो मज़बूत पाँव बिना चेहरे का एक धड़, और एक पारंपरिक सोच, ...
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Sunday, 28 April 2019
तुझमें ही...मन#१
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बरबस ही सोचने लगी हूँ उम्र की गिनती भूलकर मन की सूखती टहनियों पर नरम कोंपल का अँखुआना ख़्यालों के अटूट सिलसिले तुम्हारे आते ह...
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Saturday, 27 April 2019
धूप
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तमतमाते धूप का बेरंग चेहरा देख बालकनी के गमलों में खिलखिलाते गुलाब,बेली,सदाबहार के फूल सहम गये,गर्दन झुकाये, बैठक की काँ...
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Wednesday, 24 April 2019
पुकार
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पृथ्वी दिवस पर मेरी एक रचना पत्रिका लोकजंग में- पुकार --- पेड़ों का मौन रुदन सुनो अनसुना करो न तुम साथी हरियाली खो जायेगी ...
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Tuesday, 23 April 2019
धरती
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हरी-भरी,फलती-फूलती गर्भिणी धरती की उर्वर कोख़ उजाड़कर बंजर नींव में रोप रहे हम भावी पीढ़ियों के लिए रेतीला भविष्य। नभ से ...
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Sunday, 21 April 2019
अमलतास
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अप्रैल माह के तीसरे सप्ताह की एक सुबह पार्क के कोने में मौन तपस्वी-सा खड़े अमलतास के पेड़ पर फूटते पीले फूलों में आँखें उलझ गयीं। प...
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Thursday, 18 April 2019
मैं समाना चाहती हूँ
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मैं होना चाहती हूँ वो हवा, जो तुम्हारी साँसों में घुलती है हरपल जीवन बनकर निःशब्द! जाड़ों की गुनगुनी धूप, गर्मियो...
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