मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 17 October 2019
तुम्हें देख-देखकर
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सप्तपदी की कसमों को व्यावहारिक सारे रस्मों को मैं घोल के प्रेम में हूँ पीती तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती तुम्हें मोह पाऊँ ...
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Thursday, 10 October 2019
सृष्टि
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प्रसूति-विभाग के भीतर-बाहर साधारण-सा दृष्टिगोचर असाधारण संसार पीड़ा में कराहते अनगिनत भावों से बनते-बिगड़ते, चेहरों की भीड़ ...
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Friday, 4 October 2019
प्रभाव..एक सच
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देश-दुनिया भर की व्यथित,भयाक्रांत विचारणीय,चर्चित ख़बरों से बेखबर समाज की दुर्घटनाओं अमानवीयता,बर्बरता से सने मानवीय मूल्य...
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Tuesday, 1 October 2019
वृद्ध
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चित्र साभार: सुबोध सर की वॉल से वृद्ध ---- बुझती उमर की तीलियाँ बची ज़िंदगी सुलगाता हूँ देह की गहरी लकीरें तन्हाई में सहलात...
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Sunday, 29 September 2019
मौन सुर
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वे नहीं जानते हैं सुर-ताल-सरगम के ध्वनि तरंगों को किसी को बोलते देख अपने कंठ में अटके अदृश्य जाल को तोड़ने की बस निरर्थक च...
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Tuesday, 24 September 2019
मौन अर्ध्य
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विदा लेती भादो की बेहद उदास शाम अनायास नभ के एक छोर पर उभरी अपनी कल्पना में गढ़ी बरसों उकेरी गयी प्रेम की धुंधली तस्व...
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Monday, 23 September 2019
सजदे
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जहाँ हो बात इंसानियत की मोहब्बत का एहतराम करते हैं इंसान को इंसान समझकर नेकियों के सजदे सरेआम करते हैं मज़हबी दड़बों से बाहर झ...
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Tuesday, 10 September 2019
क्यों....?
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दामन काँटों से भरना क्यों? जीने के ख़ातिर मरना क्यों? रब का डर दिखलाने वालों ख़ुद के साये से डरना क्यों? न दर्द,न टीस,न पीव-...
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