मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 31 October 2019
सोच ज़माने की
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लच्छेदार बातों के सुंदर खोल में बसा आधुनिक युग की बेटियों का संसार मुट्ठीभर प्रगतिशील बेटियों से हटाकर आँखें कल्पनाओं के तिलिस्म क...
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Thursday, 24 October 2019
सफ़र जीवन का....
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सफ़र जीवन का यूँ अनवरत चलता रहा अंधेरों में मन के विश्वास दीप जलता रहा जख़्म छूकर पूछ बैठे चोट ये कैसे लगी? दर्द मन का बूँद बनकर...
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Monday, 21 October 2019
अधिकार की परिभाषा
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परिभाषा ------- जब देखती हूँ अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जीने की हिमायती माता-पिता के प्रेम और विश्वास को छलती, ख़ुद को भ्रमित क...
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Thursday, 17 October 2019
तुम्हें देख-देखकर
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सप्तपदी की कसमों को व्यावहारिक सारे रस्मों को मैं घोल के प्रेम में हूँ पीती तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती तुम्हें मोह पाऊँ ...
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Thursday, 10 October 2019
सृष्टि
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प्रसूति-विभाग के भीतर-बाहर साधारण-सा दृष्टिगोचर असाधारण संसार पीड़ा में कराहते अनगिनत भावों से बनते-बिगड़ते, चेहरों की भीड़ ...
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Friday, 4 October 2019
प्रभाव..एक सच
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देश-दुनिया भर की व्यथित,भयाक्रांत विचारणीय,चर्चित ख़बरों से बेखबर समाज की दुर्घटनाओं अमानवीयता,बर्बरता से सने मानवीय मूल्य...
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Tuesday, 1 October 2019
वृद्ध
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चित्र साभार: सुबोध सर की वॉल से वृद्ध ---- बुझती उमर की तीलियाँ बची ज़िंदगी सुलगाता हूँ देह की गहरी लकीरें तन्हाई में सहलात...
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Sunday, 29 September 2019
मौन सुर
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वे नहीं जानते हैं सुर-ताल-सरगम के ध्वनि तरंगों को किसी को बोलते देख अपने कंठ में अटके अदृश्य जाल को तोड़ने की बस निरर्थक च...
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