मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Saturday, 21 December 2019
हमें चाहिए आज़ादी
›
चित्र:साभार गूगल ---- अधिकारों का ढोल पीटते अमन शहर का,चैन लूटते, तोड़-फोड़,हंगामा और नारा हमें चाहिए आज़ादी...! बहेलिये के फ...
29 comments:
Wednesday, 18 December 2019
मौन हूँ मै
›
हवायें हिंदू और मुसलमान हो रही हैं, मौन हूँ मैं,मेरी आत्मा ईमान खो रही हैं। मेरी वैचारिकी तटस्थता पर अंचभित जीवित हूँ कि नहीं सा...
14 comments:
Saturday, 14 December 2019
वीर सैनिक
›
चित्र:साभार गूगल ------- हिमयुग-सी बर्फीली सर्दियों में सियाचिन के बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों और सँकरें दर्रों की धवल पगडंड...
24 comments:
Wednesday, 11 December 2019
मोह-भंग
›
भोर का ललछौंहा सूरज, हवाओं की शरारत, दूबों,पत्तों पर ठहरी ओस, चिड़ियों की किलकारी, फूल-कली,तितली भँवरे जंगल के चटकीले रंग; ...
24 comments:
Thursday, 5 December 2019
सौंदर्य-बोध
›
दृष्टिभर प्रकृति का सम्मोहन निःशब्द नाद मौन रागिनियों का आरोहण-अवरोहण कोमल स्फुरण,स्निग्धता रंग,स्पंदन,उत्तेजना, मोहक प्रत...
11 comments:
Monday, 2 December 2019
गाँव शहर हो जाते हैं
›
सभ्यताएँ करती हैं बग़ावत परंपराओं की ललकार में भूख हार मान जाती है सोंधी माटी से तकरार में रोटी की आस में जुआ उतार गमछे में कुछ बाँ...
10 comments:
Friday, 29 November 2019
कब तक...?
›
फिर से होंगी सभाएँ मोमबत्तियाँ चौराहों पर सजेंगी चंद आक्रोशित नारों से अख़बार की सुर्खियाँ फिर रंगेंगी हैश टैग में स...
11 comments:
Tuesday, 26 November 2019
ग़ुलाम
›
चित्र: साभार गूगल ------ बेबस, निरीह,डबडबाई आँखें नीची पलकें,गर्दन झुकाये भींचे दाँतों में दबाये हृदय के तूफां घसीटने को मजबू...
27 comments:
‹
›
Home
View web version