मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Tuesday, 24 December 2019
सेंटा
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मेरे प्यारे सेंटा कोई तुम्हें कल्पना कहता है कोई यथार्थ की कहानी, तुम जो भी हो लगते हो प्रचलित लोक कथाओं के सबसे उत्कृष...
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Saturday, 21 December 2019
हमें चाहिए आज़ादी
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चित्र:साभार गूगल ---- अधिकारों का ढोल पीटते अमन शहर का,चैन लूटते, तोड़-फोड़,हंगामा और नारा हमें चाहिए आज़ादी...! बहेलिये के फ...
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Wednesday, 18 December 2019
मौन हूँ मै
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हवायें हिंदू और मुसलमान हो रही हैं, मौन हूँ मैं,मेरी आत्मा ईमान खो रही हैं। मेरी वैचारिकी तटस्थता पर अंचभित जीवित हूँ कि नहीं सा...
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Saturday, 14 December 2019
वीर सैनिक
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चित्र:साभार गूगल ------- हिमयुग-सी बर्फीली सर्दियों में सियाचिन के बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों और सँकरें दर्रों की धवल पगडंड...
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Wednesday, 11 December 2019
मोह-भंग
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भोर का ललछौंहा सूरज, हवाओं की शरारत, दूबों,पत्तों पर ठहरी ओस, चिड़ियों की किलकारी, फूल-कली,तितली भँवरे जंगल के चटकीले रंग; ...
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Thursday, 5 December 2019
सौंदर्य-बोध
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दृष्टिभर प्रकृति का सम्मोहन निःशब्द नाद मौन रागिनियों का आरोहण-अवरोहण कोमल स्फुरण,स्निग्धता रंग,स्पंदन,उत्तेजना, मोहक प्रत...
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Monday, 2 December 2019
गाँव शहर हो जाते हैं
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सभ्यताएँ करती हैं बग़ावत परंपराओं की ललकार में भूख हार मान जाती है सोंधी माटी से तकरार में रोटी की आस में जुआ उतार गमछे में कुछ बाँ...
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Friday, 29 November 2019
कब तक...?
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फिर से होंगी सभाएँ मोमबत्तियाँ चौराहों पर सजेंगी चंद आक्रोशित नारों से अख़बार की सुर्खियाँ फिर रंगेंगी हैश टैग में स...
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