मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Sunday, 23 February 2020
विरहिणी/वसंत
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सूनी रात के अंतिम प्रहर एक-एककर झरते वृक्षों से विलग होकर गली में बिछे, सूखे पत्रों को सहलाती पुरवाई ने उदास ड्योढ़ी को स...
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Sunday, 16 February 2020
मधुमास
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बर्फीली ठंड,कुहरे से जर्जर, ओदायी, शीत की निष्ठुरता से उदास, पल-पल सिहरती आखिरी साँस लेती पीली पात मधुमास की प्रतीक्षा मे...
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Sunday, 9 February 2020
पदचाप
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चित्र:साभार सुबोध सर की वॉल से ------- सरल अनुभूति के जटिल अर्थ, भाव खदबदाहट, झुलसाते भाप। जग के मायावी वीथियों में गूँजित च...
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Monday, 13 January 2020
कैसे जीवन जीना हो?
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नैनों में भर खारे मोती विष के प्याले पीना हो, आशाओं के दीप बुझा के कैसे जीवन जीना हो..? मन के चाहों को छू-छूकर चिता लहकती...
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Friday, 10 January 2020
जिजीविषा
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(१) घना अंधेरा कांधे पर उठाये निरीह रात के थकान से बोझिल हो पलक झपकाते ही सुबह लाद लेती है सूरज अपने पीठ पर समय की ल...
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Sunday, 5 January 2020
हम नहीं शर्मिंदा हैं
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-----– हम हिंदु मुसलमान में ज़िंदा हैं हिंदुस्तान के मज़हबी बाशिंदा हैं लाशों पर हाय! हृदयहीन राजनीति कौन सुने मज़लूमों की आपबीती? ...
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Friday, 3 January 2020
नवल विहान
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सुनो! हे सृष्टि के अदृश्य भगवान अरजी मेरी,कामना तुच्छ तू मान अस्तित्वहीन चिरनिद्रा में सो जाऊँ जागूँ धरा पर बनकर नवल विहान ...
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Wednesday, 1 January 2020
यात्रा
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समय की ज़ेब से निकालकर तिथियों की रेज़गारी अनजाने पलों के बाज़ार में अनदेखी पहेलियों की गठरी में छुपे, मजबूरी हैं मोलना अनजा...
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