मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday, 13 May 2020
भीड़ के हक़...
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भीड़ के हक़ में दूरी है। हर तफ़तीश अधूरी है।। बँटा ज़माना खेमों में, जीना मानो मजबूरी है। फल उसूल के एक नहीं, आदत हो गयी लंग...
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Sunday, 10 May 2020
क्यों नहीं लिखते...
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हे, कवि! तुम्हारी संवेदनशील बुद्धि के तूणीर में हैं अचूक तीर साहसी योद्धा, भावनाओं के रथ पर सज्ज साधते हो नित्य दृश्यमान लक्षित...
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Thursday, 7 May 2020
मैं से मोक्ष...बुद्ध
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मैं नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता मेरा हृदयपरिवर...
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Tuesday, 5 May 2020
एक बार फिर....
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एक बार फिर.... उनके जीवन की कहानियाँ रह गयीं अधूरी बिखरे कुछ सपने, छूट गये अपने सूनी माँग,टूटी चूड़ियों बूढ़ी-जवान,मासूम द...
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Monday, 4 May 2020
प्रश्न
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मन के सतह पर तैरते अनुत्तरित प्रश्न महसूस होते हैं गहरे जुड़े हुये... किसी रहस्यमयमयी अनजान, कभी न सूखने वाले जलस्...
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Tuesday, 28 April 2020
मन.....तिरस्कार
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मन के एकांत गढ़ने लगते हैं भावनाओं के छोटे-छोटे टापू, निरंतर सोच की लहरों में डूबता-उतराता, अंतर्मन के विकल नाद से ...
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Sunday, 26 April 2020
जलते चूल्हे
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भूख के एहसास पर आदिम युग से सभ्यताओं के पनपने के पूर्व अनवरत,अविराम जलते चूल्हे... जिस पर खदकता रहता हैं अतृप्त पेट के लिए...
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Thursday, 23 April 2020
किताबें...स्मृतियों के पन्नों से
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पहली कक्षा में एडमिशन के बाद नये-नये यूनीफॉर्म ,जूतों,नयी पेंसिल,रबर, डॉल.वाली पेंसिल-बॉक्स , स्माइली आकार की प्लास्टिक की टिफिन-बॉक्स...
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