मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 22 May 2020
परिपक्वता
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किसी अदृश्य मादक सुगंध की भाँति प्रेम ढक लेता है चैतन्यता, मन की शिराओं से उलझता प्रेम आदि में अपने होने के मर्म में "...
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Tuesday, 19 May 2020
क्या विशेष हो तुम?
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ये तो सच है न!! तुम कोई वीर सैनिक नहीं, जिनकी मृत्यु पर देश गर्वित हो सके। न ही कोई प्रतापी नेता जिनकी मौत क...
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Monday, 18 May 2020
साँझ
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पेड़ की फुनगी में दिनभर लुका-छिपी खेलकर थका, डालियों से हौले से फिसलकर तने की गोद में लेटते ही सो जाता है, उनींदा,अलसा...
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Sunday, 17 May 2020
ध्वंसावशेष
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उनके तलुओं में देश के गौरवशाली मानचित्र की गहरी दरारें उभर आयी हैं। छाले,पीव,मवाद, पके घावों,स्वेद-रक्त की धार से गी...
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Wednesday, 13 May 2020
भीड़ के हक़...
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भीड़ के हक़ में दूरी है। हर तफ़तीश अधूरी है।। बँटा ज़माना खेमों में, जीना मानो मजबूरी है। फल उसूल के एक नहीं, आदत हो गयी लंग...
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Sunday, 10 May 2020
क्यों नहीं लिखते...
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हे, कवि! तुम्हारी संवेदनशील बुद्धि के तूणीर में हैं अचूक तीर साहसी योद्धा, भावनाओं के रथ पर सज्ज साधते हो नित्य दृश्यमान लक्षित...
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Thursday, 7 May 2020
मैं से मोक्ष...बुद्ध
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मैं नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता मेरा हृदयपरिवर...
26 comments:
Tuesday, 5 May 2020
एक बार फिर....
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एक बार फिर.... उनके जीवन की कहानियाँ रह गयीं अधूरी बिखरे कुछ सपने, छूट गये अपने सूनी माँग,टूटी चूड़ियों बूढ़ी-जवान,मासूम द...
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