मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 24 April 2021
आत्मा
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आत्मा को ललकारती चीत्कारों को अनसुना करना आसान नहीं होता ... इन दिनों सोचने लगी हूँ एक दिन मेरे कर्मों का हिसाब करती प्रकृति ने पूछा कि- महा...
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Sunday, 18 April 2021
वक़्त के अजायबघर में
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वक़्त के अजायबघर में अतीत और वर्तमान प्रदर्शनी में साथ लगाये गये हैं- ऐसे वक़्त में जब नब्ज़ ज़िंदगी की टटोलने पर मिलती नहीं, साँसें डरी-सहमी ह...
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Friday, 9 April 2021
तुम्हारा मन
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निर्लज्ज निमग्न होकर मन देता है तुम्हें मूक निमंत्रण और तुम निर्विकार,शब्द प्रहारकर झटक जाते हो प्रेम अनदेखा कर जब तुम्हारा मन नहीं होता...।...
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Saturday, 3 April 2021
चलन से बाहर...(कुछ मुक्तक)
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१) बिना जाने-सोचे उंगलियाँ उठा देते हैं लोग बातों से बात की चिंगारियाँ उड़ा देते हैं लोग अख़बार कोई पढ़ता नहीं चाय में डालकर किसी के दर्द को सु...
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Saturday, 27 March 2021
कली केसरी पिचकारी
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कली केसरी पिचकारी मन अबीर लपटायो, सखि रे! गंध मतायो भीनी राग फाग का छायो। चटख कटोरी इंद्रधनुषी वसन वसुधा रंगवायो, सरसों पीली,नीली नदियाँ स...
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Friday, 19 March 2021
उम्र अटकी रह जाती है
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विचारों के विशाल सिंधु की लयबद्ध लहरें मथती रहती है अनवरत, मंथन से प्राप्त विष-अमृत के घटो का विश्लेषण करता जीवन नौका पर सवार 'उम्र...
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Wednesday, 3 March 2021
हे प्रकृति...
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मुझे ठहरी हुई हवाएँ बेचैन करती हैं बर्फीली पहाड़ की कठिनाइयाँ असहज करती है तीख़ी धूप की झुलसन से रेत पर पड़ी मछलियों की भाँति छटपटाने लगती हूँ ...
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Thursday, 25 February 2021
जोगिया टेसू मुस्काये रे
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गुन-गुन छेड़े पवन बसंती धूप की झींसी हुलसाये रे, वसन हीन वन कानन में जोगिया टेसू मुस्काये रे। ऋतु फाग के स्वागत में धरणी झूमी पहन महावर, अ...
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