मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Sunday, 18 July 2021
नन्ही बुलबुल
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कच्ची उमर के पकते सपने महक जाफ़रानी घोल रही है। घर-आँगन की नन्ही बुलबुल हौले-हौले पर खोल रही है। मुस्कान,हँसी,चुहलबाज़ी मासूम खेल की अनगिनी ब...
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Sunday, 11 July 2021
प्रेम में डूबी स्त्री
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चित्र : मनस्वी ------------------ प्रेम में डूबी स्त्री---- प्रसिद्ध प्रेमकाव्यों की बेसुध नायिकाओं सी किसी तिलिस्मी झरने में रात-रातभर ...
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Sunday, 4 July 2021
जूझना होगा
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ख़ त्म हो रही आशाओं से ठहरने की विनती करना व्यर्थ है, उन्हें रोकने के लिए जूझना होगा नैराश्य से आशा को निराशा के जबड़े से खींचते समय उसकी नुकी...
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Saturday, 24 April 2021
आत्मा
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आत्मा को ललकारती चीत्कारों को अनसुना करना आसान नहीं होता ... इन दिनों सोचने लगी हूँ एक दिन मेरे कर्मों का हिसाब करती प्रकृति ने पूछा कि- महा...
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Sunday, 18 April 2021
वक़्त के अजायबघर में
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वक़्त के अजायबघर में अतीत और वर्तमान प्रदर्शनी में साथ लगाये गये हैं- ऐसे वक़्त में जब नब्ज़ ज़िंदगी की टटोलने पर मिलती नहीं, साँसें डरी-सहमी ह...
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Friday, 9 April 2021
तुम्हारा मन
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निर्लज्ज निमग्न होकर मन देता है तुम्हें मूक निमंत्रण और तुम निर्विकार,शब्द प्रहारकर झटक जाते हो प्रेम अनदेखा कर जब तुम्हारा मन नहीं होता...।...
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Saturday, 3 April 2021
चलन से बाहर...(कुछ मुक्तक)
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१) बिना जाने-सोचे उंगलियाँ उठा देते हैं लोग बातों से बात की चिंगारियाँ उड़ा देते हैं लोग अख़बार कोई पढ़ता नहीं चाय में डालकर किसी के दर्द को सु...
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Saturday, 27 March 2021
कली केसरी पिचकारी
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कली केसरी पिचकारी मन अबीर लपटायो, सखि रे! गंध मतायो भीनी राग फाग का छायो। चटख कटोरी इंद्रधनुषी वसन वसुधा रंगवायो, सरसों पीली,नीली नदियाँ स...
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