मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 12 July 2025
दर्द ज़रा कहने दो
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थोड़ी इंसानियत तो आदमी में रहने दो। पत्थर नहीं हो रौ जज़्बात की बहने दो।। बे-हाल लहूलुहान है वो शहर आजकल, बे-नाम सड़कों पे दरिया मरहम का बहने...
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Wednesday, 26 March 2025
बे-मुरव्वत है ज़िंदगी
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बे-आवाज़ ला-इलाज उम्रभर मर्ज़ देती है। बे-मुरव्वत है ज़िंदगी बे-इंतहा दर्द देती है। जम जाते हैं अश्क आँख के मुहाने पर; मोहब्बत की बे-रुख़ी मौस...
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Wednesday, 12 March 2025
बचाना अपने भीतर
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सरक रहे हैं तनों की सुडौल देह से पातों के उत्तरीय, टहनियों की नाजुक कलाइयों से टूटकर बिखर रही हैं खनकती हरी चुड़ियाँ। निर्वस्त्र हुए वृक्ष...
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Monday, 3 March 2025
बे-हया का फूल
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हर बरस फागुन के मौसम में ढाक के गंधहीन फूलों को बदन पर मल-मलकर महुआ की गंध से मतायी मेरी श्वासों की सारंगी समझने का प्रयास करती है जीवन...
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Wednesday, 1 January 2025
आकांक्षा
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नन्हीं-नन्हीं आकांक्षाओं की गठरी सहेजे, आने वाली तिथियों के किवाड़ की झिर्रियों के पार उत्सुकता से झाँकने का प्रयास, नयी तिथियों की पाँव की...
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Thursday, 29 August 2024
इख़्तियार में कुछ बचा नहीं
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नज़्म ----- चेहरे पे कितने भी चेहरे लगाइए, दुनिया जो जानती वो हमसे छुपाइए। माना; अब आपके दिल में नहीं हैं हम, शिद्दत से अजनबीयत का रिस्ता निभ...
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Thursday, 1 August 2024
प्रेम-पत्र
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सालों बाद मन पर आज फिर बारिशों की टिपटिपाहट दस्तक देने लगी उदासियों के संदूक खोलकर तुम्हारे अनलिखे प्रेम-पत्र पढ़ते हुए भावों के आवरण में ...
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Monday, 10 June 2024
कवि के सपने
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कवि की आँखों की चौहद्दी सुंदर उपमाओं और रूपकों से सजी रहती है बेलमुंडे जंगलों के रुदन में कोयल की कूक, तन-मन झुलसाकर ख़ाक करती गर्मियों में ब...
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