मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Monday, 11 December 2017
क्या हुआ पता नहीं
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क्यों ख़्यालों से कभी ख़्याल तुम्हारा जुदा नहीं, बिन छुये एहसास जगाते हो मौजूदगी तेरी लम्हों में, पाक बंदगी में दिल की तुम ...
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Sunday, 10 December 2017
ख़्यालों में कोई
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शाख़ से टूटने के पहले एक पत्ता मचल रहा है। उड़ता हुआ थका वक्त, आज फिर से बदल रहा है। गुजरते सर्द लम्हों की ख़ामोश शिकायत पर ...
16 comments:
Saturday, 7 October 2017
तेरा साथ प्रिय
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जीवन सिंधु की स्वाति बूँद तुम चिरजीवी मैं क्षणभंगुर, इस देह से परे मन बंधन में मादक कुसुमित तेरा साथ प्रिय। पल पल स्पंदित सम्म...
25 comments:
Tuesday, 14 March 2017
एक ख्वाब
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ओ हसीन तन्हा चाँद ओ झिलमिल सितारों उतर आओ जमीं पर रात के खामोश दामन पर महफिल हम जमायेगे चंदा तुम फूलों को चूमकर अपनी दिल की बात कहन...
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