मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday 12 July 2018
तुम नील गगन में
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आँखों में भर सूरत उजली मैं स्वप्न तुम्हारे बुनती हूँ तुम नील गगन में रहते हो मैं धरा से तुमको गुनती हूँ न चाहत तुमको पाने की...
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Saturday 7 July 2018
कचरे में ज़िंदगी की तलाश
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अक्सर गली के उस मुहाने पर आकर थम जाते है मेरे पैर जहाँ मुहल्लेभर का कचरा बजबजाते कूड़ेदान के आस-पास बिखरा होता है आवारा कुत्तो...
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Thursday 5 July 2018
काश! हमें जो.प्यार न होता
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हृदय हीनता के हाथों प्रहर प्रथम प्रहार न होता मान और मनुहार न होता काश! हमेंं जो प्यार न होता अब आयेंगे सोच सोच कर उत्कंठा...
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Wednesday 4 July 2018
पल दो पल में
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पल दो पल में ही ज़िदगी बदल जाती है। ख़ुशी हथेली पर बर्फ़-सी पिघल जाती है।। उम्र वक़्त की किताब थामे प्रश्न पूछती है, जख़्म चुनते ये ...
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Sunday 1 July 2018
मरते सपने
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बीतती उम्र के खोल पर खुशियों का रंग पोते मैं अक्सर फड़फड़ाता हूँ मुस्कुराता हूँ चहककर अपने लिये तय दायरों में थकाऊ,उबाऊ रा...
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Saturday 30 June 2018
नागार्जुन
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ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा का चंद्र साहित्य जगत में उदित लेखनी के ओज से और अपने व्यक्तित्व के बेबाकीपन से संपूर्ण जगत को प्रभावित करने ...
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Wednesday 27 June 2018
गीत सुनो
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दुःख,व्यथा,क्षोभ ही नहीं भरा बस विरह, क्रोध ही नहीं धरा मकरंद मधुर उर भीत सुनो जीवन का छम-छम गीत सुनो ज्वाला में जल मिट जाओगे...
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Monday 25 June 2018
एकांत का उत्सव
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नभ के दालान से पहाड़ी के कोहान पर फिसलकर क्षितिज की बाहों में समाता सिंदुरिया सूरज, किरणों के गुलाबी गुच्छे टकटकी बाँधें पेड़...
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