मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 22 April 2017
धरती बचाओ
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जनम मरण का खेल तमाशा सुख दुख विश्वास अविश्वास प्रेम क्रोध सबका संगम है कर्मभूमि सबके जीवन की धरती माँ का यही अँचल है नहीं किसी से कर...
Thursday, 20 April 2017
तुम साथ हो
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मौन हृदय के स्पंदन के सुगंध में खोये जग के कोलाहल से परे एक अनछुआ सा एहसास सम्मोहित करता है एक अनजानी कशिश खींचती है अपनी ओर एकान्...
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खुशबू आपकी
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सुर्ख गुलाब की खुशबुएँ उतरने लगी रूठी ज़िदगी फिर से अब सँवरने लगी बाग में तितलियाँ फूलों को चूमे है जब लेकर अँगड़ाईयाँ हर कली बिखरने लग...
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Wednesday, 19 April 2017
राधा की पीड़ा
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न भाये कछु राग रंग, न जिया लगे कछु काज सखि। मोती टपके अँचरा भीगे, बिन मौसम बरसात सखि। सूना पनघट जमना चुप सी, गोकुल की गली उदास सखि...
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एक ख्याल
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जेहन की पगडंडियों पर चलकर ए ख्याल,मन के कोरो को छूता है। बरसों से जमे हिमखंड शब्दों की आँच में पिघलकर, हृदय की सूखी नदी की जलधारा बन ...
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Tuesday, 18 April 2017
पागल है दिल
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पागल है दिल संग यादों के निकल पड़ता है, चाँद का चेहरा देख लूँ नीदों में खलल पड़ता है। बिखरी रहती थी खुशबुएँ कभी हसीन रास्तों पर, उन वीर...
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सोच के पाखी
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अन्तर्मन के आसमान में रंग बिरंगे पंख लगाकर उड़ते फिरते सोच के पाखी अनवरत अविराम निरंतर मन में मन से बातें करते मन के सूनेपन को भरते ...
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जीवन एक खिलौना है।
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माटी के कठपुतले हम सब,जीवन एक खिलौना है। हँसकर जी ललचाए, कभी यह काँटो भरा बिछौना है। सोच के डोर के उलझे धागे सोचों का ही सब रोना है। ...
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