मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 2 September 2017
देहरी
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चित्र- साभार गूगल तन और मन की देहरी के बीच भावों के उफनते अथाह उद्वेगों के ज्वार सिर पटकते रहते है। देहरी पर खड़ा अपनी मनचाही इ...
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Thursday, 31 August 2017
क्षणिकाएँ
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ख्वाहिशें रक्तबीज सी पनपती रहती है जीवनभर, मन अतृप्ति में कराहता बिसूरता रहता है अंतिम श्वास तक। ••••••••••••••••••••••••••• मौ...
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Wednesday, 30 August 2017
उनकी याद
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*चित्र साभार गूगल* तन्हाई में छा रही है उनकी याद देर तक तड़पा रही है उनकी याद काश कि उनको एहसास होता कितना सता रही है उनकी याद एक ...
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Tuesday, 29 August 2017
जाते हो तो....
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जाते हो तो साथ अपनी यादें भी लेकर जाया करो पल पल जी तड़पा के आँसू बनकर न आया करो चाहकर भी जाने क्यों खिलखिला नहीं पाती हूँ बेचैनिय...
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Sunday, 27 August 2017
भक्ति इंसान की
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ये कैसी भक्ति करते हो इंसान की लगे औलाद हो खूंखार शैतान की धार्मिक उन्माद में भूले इंसानियत सर चढ़ी बोल रही तेरी हैवानियत अपने हाथों ...
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Saturday, 26 August 2017
मौन हो तुम
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मौन हो तुम गुनगुनाते वीणा मधुर आलाप हो मंद मंद सुलगा रहा मन अतृप्त प्रेम का ताप हो नैन दर्पण आ बसे तुम स्वर्ण स्वप्नों के चितेरे प्...
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Wednesday, 23 August 2017
तीज
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जय माता पार्वती जय हो बाबा शंकर रख दीजे हाथ माथे कृपा करे हमपर अटल सुहाग माँगे कर तीज व्रत हम बना रहे जुग जुग साथ और सत सब माँग का सि...
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Monday, 21 August 2017
मैं रहूँ न रहूँ
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फूलेंगे हरसिंगार प्रकृति करेगी नित नये श्रृंगार सूरज जोगी बनेगा ओढ़ बादल डोलेगा द्वार द्वार झाँकेगी भोर आसमाँ की खिड़की से किरणें धरा क...
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