मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 15 September 2017
तुम ही तुम
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तुम ही तुम छाये हो ख़्वाबों ख़्यालों में दिल के शजर के पत्तों में और डालों में लबों पे खिली मुस्कान तेरी जानलेवा है चाहती हूँ दिल टाँक...
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Wednesday, 13 September 2017
हिंदी
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बचपन से जाना है हिंदी भारत के भाल पर बिंदी राष्ट्र की खास पहचान हिंदी भाषी अपना नाम गोरो ने जो छोड़ी धरोहर उसके आगे हुई है चिंदी ह...
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Monday, 11 September 2017
चाँद
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*चित्र साभार गूगल* मुक्तक चाँद आसमान से बातें करता ऊँघने लगा अलसाकर बादलों के पीछे आँखें मूँदने लगा नीरवता रात की मुस्कुरायी सित...
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Sunday, 10 September 2017
ज़िदगी
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हाथों से वक़्त के रही फिसलती ज़िदगी मुट्ठियों से रेत बन निकलती ज़िदगी लम्हों में टूट जाता है जीने का ये भरम हर मोड़ पे सबक लिए है मिलती ...
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Friday, 8 September 2017
मानवता की तलाश
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धर्म,जातिऔर पार्टी के आधार पर कर्मों को अपने हिसाब से विचारों के तराजू पर व्यवस्थित कर तोलते, एक एक दाने को मसल मसल कर कंकड़ ढूँढ...
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Thursday, 7 September 2017
मोहब्बत की रस्में
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* चित्र साभार गूगल* मोहब्बत की रस्में अदा कर चुके हम मिटाकर के ख़ुद को वफ़ा कर चुके हम इबादत में कुछ और दिखता नहीं है सज़दे में उन को...
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Wednesday, 6 September 2017
घोलकर तेरे एहसास
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अश्आर ----- घोलकर तेरे एहसास जेहन की वादियों में मुस्कुराती हूँ तेरे नाम के गुलाब खिलने पर तेरा ख्याल धड़कनों की ताल पर गूँजता...
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Tuesday, 5 September 2017
इंतज़ार
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स्याह रात के तन्हा दामन में लम्हा लम्हा सरकता वक्त, बादलों के ओठों पर धीमे धीमें मुस्कुराता स्याह बादल के कतरों के बीच शफ्फाक ही...
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