मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 16 November 2017
ख्याल
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साँझ की गुलाबी आँखों में, डूबती,फीकी रेशमी डोरियों के सिंदूरी गुच्छे, क्षितिज के कोने के स्याह कजरौटे में समाने लगे, द...
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Tuesday, 14 November 2017
चकोर
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सम्मोहित मन निमग्न ताकता है, एकटुक झरोखे से मुंडेर की अलगनी पर बेफिक्र लटके अभ्रख के टुकड़े से चमकीले चाँद को, पिघलती चा...
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Monday, 13 November 2017
किन धागों से सी लूँ बोलो
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मैं कौन ख़ुशी जी लूँ बोलो। किन अश्क़ो को पी लूँ बोलो। बिखरी लम्हों की तुरपन को किन धागों से सी लूँ बोलो। पलपल हरपल इन श्वासों से...
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Sunday, 12 November 2017
कविताएँ रची जाती.....
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मन के विस्तृत आसमान पर भावों के पंछी शोर मचाते है, उड़-उड़ कर जब मन के सारे मनकों को फैलाते हैं, शब्दों के बिखरे मोती चुन-...
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Monday, 6 November 2017
तारे जग के
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तारे जग के नन्हे-नन्हें झिलमिल स्वप्न हमारे चाहते है हम छूना नभ को सतरंग में रंगना बादल को सूरज को भरकर आँखों में हम हरना...
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Saturday, 4 November 2017
सुरमई अंजन लगा
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सुरमई अंजन लगा निकली निशा। चाँदी की पाजेब से छनकी दिशा।। सेज तारों की सजाकर चाँद बैठा पाश में, सोमघट ताके नयन भी निसृत सुधा...
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Friday, 3 November 2017
मन की नमी
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दूब के कोरों पर, जमी बूँदें शबनमी। सुनहरी धूप ने, चख ली सारी नमी। कतरा-कतरा पीकर मद भरी बूँदें, संग किरणों के, मचाये पुर...
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Wednesday, 1 November 2017
मुस्कान की कनी
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लबों पे अटकी मुस्कान की कनी दिल में गड़ गयी लफ्ज़ों की अनी बातों की उंगलियों से जा लिपटा मन उलझकर रह गयी छुअन में वहीं ...
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