मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 29 December 2017
नन्ही ख़्वाहिश
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एक नन्ही ख़्वाहिश चाँदनी को अंजुरी में भरने की, पिघलकर उंगलियों से टपकती अंधेरे में ग़ुम होती चाँदनी देखकर उदास रात के दामन...
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Tuesday, 26 December 2017
बदलते साल में....
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सोचते हैं इस नये साल में क्या बदल जाएगा....? तारीख़ के साथ किसका हाल बदल जाएगा। सूरज,चंदा,तारे और फूल ...
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Saturday, 23 December 2017
लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे..
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अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे। दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।। पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम। उम्रे-रवाँ के ख़्व...
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Friday, 22 December 2017
सूरज तुम जग जाओ न
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धुँधला धुँधला लगे है सूरज आज बड़ा अलसाये है दिन चढ़ा देखो न कितना क्यूँ.न ठीक से जागे है छुपा रहा मुखड़े को कैसे ज्यों रजाई स...
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Saturday, 16 December 2017
विधवा
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नियति के क्रूर हाथों ने ला पटका खुशियों से दूर, बहे नयन से अश्रु अविरल पलकें भींगने को मजबूर। भरी कलाई,सिंदूर की रेखा है चौ...
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Tuesday, 12 December 2017
किसी साँझ के किनारे
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किसी साँझ के किनारे पलकें मूँदती हौले से, आसमां से उतरकर पेडों से शाखों से होकर पत्तों का नोकों से फिसलकर, ख़ामोश झील के ...
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Monday, 11 December 2017
क्या हुआ पता नहीं
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क्यों ख़्यालों से कभी ख़्याल तुम्हारा जुदा नहीं, बिन छुये एहसास जगाते हो मौजूदगी तेरी लम्हों में, पाक बंदगी में दिल की तुम ...
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Sunday, 10 December 2017
ख़्यालों में कोई
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शाख़ से टूटने के पहले एक पत्ता मचल रहा है। उड़ता हुआ थका वक्त, आज फिर से बदल रहा है। गुजरते सर्द लम्हों की ख़ामोश शिकायत पर ...
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