मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday 19 May 2018
तुम जीवित हो माने कैसे?
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चित्र-मनस्वी प्रांजल लीपे चेहरों की भीड़ में सच-झूठ पहचाने कैसे? अनुबंध टूटते विश्वास की मौन आहट जाने कैसे? नब्ज संवेदना की...
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Wednesday 16 May 2018
पेड़ बचाओ,जीवन बचाओ
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हाँ,मैंने भी देखा है चारकोल की सड़कें फैल रही ही है सुरम्य पेड़ों से आच्छादित सर्पीली घाटियों में, सभ्य हो रहे है हम निर्वस्त्...
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Thursday 10 May 2018
जफ़ा-ए-उल्फ़त
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पूछो न बिना तुम्हारे कैसे सुबह से शाम हुई पी-पीकर जाम यादों के ज़िंदगी नीलाम हुई दर्द से लबरेज़ हुआ ज़र्रा-ज़र्रा दिल का लड़खड़ाती हर ...
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Sunday 6 May 2018
कहानी अधूरी,अनुभूति पूरी -प्रेम की
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उम्र के बोझिल पड़ाव पर जीवन की बैलगाड़ी पर सवार मंथर गति से हिलती देह बैलों के गलेे से बंधा टुन-टुन की आवाज़ में लटपटाया हुआ मन ...
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Friday 4 May 2018
आत्मबोध
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हर शाम सूरज की बोझिल फीकी बाहें स्याह क्षितिज में समाने के पहले छूकर मेरी आँखों को उदास कर जाती है गहरे नीले नभ पर छाय...
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Sunday 22 April 2018
अस्तित्व के मायने
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बड़ी हसरत से देखता हूँ वो नीला आसमान जो कभी मेरी मुट्ठी में था, उस आसमान पर उगे नन्हें सितारों की छुअन से किलकता था मन कोमल ...
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Friday 20 April 2018
क़दमों की आहट
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साँझ की राहदारी में क्षितिज की स्याह आँखों में गुम ख़्यालों की सीढियों पर बैठी याद के क़दमों की आहट टटोलती है। आसमां की ख़ामोश बस...
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Monday 16 April 2018
मत लिखो प्रेम कविताएँ
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मत लिखो प्रेम कविताऐं महसूस होती प्रेम की अनुभूतियों को हृदय के गोह से निकलते उफ़नते भावों के मुख पर रख दो संयम का भारी पत्थर ...
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