मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 8 February 2019
बूँदभर गंगाजल
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मौन के सूक्ष्म तंतुओं से अनवरत रिसता, टीसता,भीगता असहज,असह्य भाव उलझकर खोल की कठोर ,शून्य दीवारों में बेआवाज़ कराहता, ...
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Thursday, 7 February 2019
तुम ही कहो
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हाँ ,तुम सही कह रहे हो फिर वही घिसे-पिटे प्रेमाव्यक्ति के लिए प्रयुक्त अलंकार,उपमान,शब्द शायद शब्दकोश सीमित है; प्रेम के लिये...
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Tuesday, 5 February 2019
विश्लेषण
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कभी सोचा न हो तो सोचना जरूर बहुत ज्यादा विश्लेषण छानबीन करती नजरें जरूरत से ज्यादा जागरुकता कहीं खत्म न कर दे आपके प्रि...
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Friday, 1 February 2019
सुन...
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नक़्श आँगन के अजनबी,कहें सदायें सुन हब्स रेज़ा-रेज़ा पसरा,सीली हैं हवायें सुन धड़कन-फड़कन,आहट,आहें दीद-ए-नमनाक दिल के अफ़सानें में...
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Saturday, 26 January 2019
एक त्योहार
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(१) सत्तर वर्षों से ठिठुरता गणतंत्र पदचापों की गरमाहट से जागकर कोहरे में लिपटा राजपथ पर कुनमुनाता है। गवाह प्राची...
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Friday, 25 January 2019
गीत
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गणतंत्र दिवस पर एक आम आदमी के मन का गीत ---- जीवन के हर दिवस के कोरे पृष्ठ पर, वह लिखना चाहता है अपने सिद्धांत,ऊसूल, ...
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Wednesday, 23 January 2019
याद का दोना
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क्षितिज का सिंदूरी आँचल मुख पर फैलाये सूरज सागर की इतराती लहरों पर बूँद-बूँद टपकने लगा। सागर पर पाँव छपछपता लह...
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Friday, 18 January 2019
मन मेरा
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मन मेरा औघड़ मतवाला पी प्रेम भरा हाला प्याला मन मगन गीत गाये जोगी चितचोर मेरा मुरलीवाला मंदिर , मस्जिद न गुरुद्वारा गिरिजा ...
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