मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 18 April 2019
मैं समाना चाहती हूँ
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मैं होना चाहती हूँ वो हवा, जो तुम्हारी साँसों में घुलती है हरपल जीवन बनकर निःशब्द! जाड़ों की गुनगुनी धूप, गर्मियो...
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Tuesday, 16 April 2019
गर्मी के दिन
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राग-रंग बदला मौसम का बदले धूप के तेवर रुई धुन-धुन आसमान के उड़ गये सभी कलेवर सूरज की पलकें खुलते ही लाजवंती बने पेड़ विशाल ...
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Friday, 12 April 2019
मैं रहूँ या न रहूँ
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कभी किसी दिन तन्हाई में बैठे अनायास ही मेरी स्मृतियों को तुम छुओगे अधरों से झरती कोमल चम्पा की कलियों को समेटकर अँजुरी ...
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Monday, 8 April 2019
मन
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(१) जीवन के बेढब कैनवास पर भावों की कूची से उम्रभर उकेरे गये चेहरों के ढेर में ढूँढ़ती रही एहसास की खुशबू धूप ,हवा ,पानी, ज...
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Wednesday, 3 April 2019
आकुल रश्मियाँ
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पत्थर की सतह पर लाजवन्ति के गमले केे पीछे गालों पर हाथ टिकाये पश्चिमी आसमां के बदलते रंग में अनगिनत कल्पनाओं में विलीन निःशब्द...
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Wednesday, 27 March 2019
स्वयंसिद्ध
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धधकते अग्निवन के चक्रव्यूह में समर्पित देती रहीं प्रमाण अपनी पवित्रता का सीता,अहिल्या,द्रौपदी गांधारी,कुंती, और भी असंख्य ...
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Tuesday, 26 March 2019
झुर्रियाँ
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बलखाती साँस की ताल पर अधरों के राग पर हौले-हौले थिरकती सुख-दुख की छेनी और समय की हथौड़ी के प्रहार से बनी महीन, गहरी, ...
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Friday, 22 March 2019
जल
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हाँ,मैंने महसूस किया है अंधाधुंध दोहन,बर्बादी से घबराकर,सहमकर चेतावनी अनसुना करते स्वार्थी मानवों के अत्याचार से पीड़ित पात...
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