मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Tuesday, 24 September 2019
मौन अर्ध्य
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विदा लेती भादो की बेहद उदास शाम अनायास नभ के एक छोर पर उभरी अपनी कल्पना में गढ़ी बरसों उकेरी गयी प्रेम की धुंधली तस्व...
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Monday, 23 September 2019
सजदे
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जहाँ हो बात इंसानियत की मोहब्बत का एहतराम करते हैं इंसान को इंसान समझकर नेकियों के सजदे सरेआम करते हैं मज़हबी दड़बों से बाहर झ...
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Tuesday, 10 September 2019
क्यों....?
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दामन काँटों से भरना क्यों? जीने के ख़ातिर मरना क्यों? रब का डर दिखलाने वालों ख़ुद के साये से डरना क्यों? न दर्द,न टीस,न पीव-...
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Tuesday, 3 September 2019
मंदी
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हमारे औद्योगिक शहर में छोटे-मंझोले,बंद होते कल कारखानों,छँटनी के बाद मजदूर वर्ग के माथे पर दो समय की रोटी,भात पर चिंता की गहराती लकीरे...
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Monday, 2 September 2019
स्त्री..व्रत
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सारा अंतरिक्ष नापकर मंगल और चंद्र की माटी जाँचकर स्त्रियों के लिए रेखांकित सीमाओं को मिटाने के लिए सतत प्रयासरत इंटरनेट ...
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Monday, 26 August 2019
शिला
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निर्जीव और बेजान निष्ठुरता का अभिशाप लिये मूक पड़ी है सदियों से स्पंदनहीन शिलाएँ अनगिनत प्रकारों में गढ़ी जाती मनमा...
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Friday, 16 August 2019
इच्छा
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आसान कुछ भी कहाँ होता है मनमुताबिक थोड़ी जहां होता है मात्र "इच्छा"करना ही आसान है इच्छाओं की गाँठ से मन बंधा होता है ...
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Wednesday, 14 August 2019
तो क्या आज़ादी बुरी होती है?
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तुम बेबाकी से कहीं भी कुछ भी कह जाते हो बात-बात पर क्षोभ और आक्रोश में भर वक्तव्यों में अभद्रता की सीमाओं का उल्लंघन करत...
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