मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिक
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Wednesday, 18 May 2022
तुमसे प्रेम करते हुए...(३)
›
सिलवट भरे पन्नों पर जो गीली-सी लिखावट है, मन की स्याही से टपकते, ज़ज़्बात की मिलावट है। पलकें टाँक रखी हैं तुमने भी तो,देहरी पर, ख़ामोशियों की ...
27 comments:
Sunday, 15 May 2022
शब्द प्रभाव
›
चित्र:मनस्वी खौलते शब्दों के छींटे देह पर गिरते ही भाप बनकर मन में समा जाते हैं... असहनीय वेदना से छटपटाता,व्याकुल भीतर ही भीतर सीझता मन मर...
26 comments:
Thursday, 12 May 2022
राजनीति ... कठपुतलियाँ
›
वंश,कुल,नाम,जाति,धर्म, संप्रदाय भाषा,समाज,देश के सूक्ष्म रंध्रों से रिसती सारी रोशनियों को दिग्भ्रमित बंद कर दिया गया राजनीति की अंधेरी गुफ...
8 comments:
Sunday, 1 May 2022
मजदूर दिवस
›
चित्र: मनस्वी प्राजंल सभ्यताओं की नींव के आधार इतिहास के अज्ञात शिल्पकार, चलो उनके लिए गीत गुनगुनाये मजदूर दिवस सम्मान से मनाये। पसीने से व...
15 comments:
Friday, 22 April 2022
पृथ्वी का दुःख
›
वृक्ष की फुनगी से टुकुर-टुकुर पृथ्वी निहारती चिड़िया चिंतित है कटे वृक्षों के लिए...। धूप से बदरंग बाग में बेचैन,उदास तितली चितिंत है फू...
12 comments:
Saturday, 9 April 2022
गीत अधूरा प्रेम का
›
गीत अधूरा प्रेम का, रह-रहकर मैं जाप रही हूँ। व्याकुल नन्ही चिड़िया-सी एक ही राग आलाप रही हूँ। मौसम बासंती स्वप्नों का क्षणभर ठहरा, पाँखें मन...
17 comments:
Thursday, 24 March 2022
अल्पसंख्यक
›
विश्व के इतिहास में दर्ज़ अनगिनत सभ्यताओं में भीड़ की धक्का-मुक्की से अलग होकर अपनी नागरिकता की फटी प्रतियाँ लिए देशों,महादेशों, समय के मध्यां...
13 comments:
Thursday, 17 March 2022
रंग
›
भोर का रंग सुनहरा, साँझ का रंग रतनारी, रात का रंग जामुनी लगता है...। हया का रंग गुलाबी, प्रेम का रंग लाल, हँसी का रंग हरा लगता है...। कल्प...
10 comments:
‹
›
Home
View web version