मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 14 July 2017
रात के सितारें
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अंधेरे छत के कोने में खड़ी आसमान की नीले चादर पर बिछी नन्हें बूटे सितारों को देखती हूँ उड़ते जुगनू के परों पर आधे अधूरे ख्वाहिशें रखती ...
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Thursday, 13 July 2017
छू गया नज़र से
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चित्र साभार गूगल ---- छू गया नज़र से वो मुझको जगमगा गया बनके हसीन ख्वाब निगाहों में कोई छा गया देर तलक साँझ की परछाई रही स्याह सी चा...
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Wednesday, 12 July 2017
न तोड़ो आईना
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न तोड़ो आईना यूँ राह का पत्थर बनकर खनकने दो न हसी प्यार का मंज़र बनकर चुपचाप सोये है जो रेत के सफीने है साथ बह जायेगे लहरों के समन्दर ब...
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बुलबुले
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जीवन के निरंतर प्रवाह में इच्छाएँ हमारी पानी के बुलबुले से कम तो नहीं, पनपती है टिक कर कुछ पल दूसरे क्षण फूट जाती है कभी तैरती है...
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Tuesday, 11 July 2017
रक्तपिपासु
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क्यूँ झकझोरती नहीं आत्मा रक्त पिपासु बन बैठे है क्यूँ हृदयविहीन है इंसां ये कैसा जेहाद बता न किस धर्म में लिखा है घात बता रक्त सने ...
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आराम कमाने निकलते है
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आराम कमाने निकलते है आराम छोड़कर जेब में रखते है मुट्ठीभर ख्वाहिश मोड़कर दो निवाले भी मुश्किल हो जाते है सुकून से कल की चिंता रख दे ...
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Monday, 10 July 2017
निरर्थक
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मन सिंधु को मथकर जो शब्द के मोती बाहर आते है रचकर सादे पन्नों पर इन्द्रधनुष बन जाते है मंथन अविराम निरंतर भावों की लहरे हर गति से ...
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Friday, 7 July 2017
बुझ गयी शाम
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बुझ गयी शाम गुम हुई परछाईयाँ भी जल उठे चराग साथ मेरी तन्हाइयाँ भी दिल के मुकदमे में दिल ही हुआ है दोषी हो गया फैसला बेकार है सुनवाईया...
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