मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 29 July 2017
किस गुमान में है
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आप अब तक किस गुमान में है बुलंदी भी वक्त की ढलान में है कदम बेजान हो गये ठोकरों से सफर ज़िदगी का थकान में है घूँट घूँट पीकर कंठ भ...
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Friday, 28 July 2017
आँखें
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तुम हो मेरे बता गयी आँखें चुप रहके भी जता गयी आँखें छू गयी किस मासूम अदा से मोम बना पिघला गयी आँखें रात के ख्वाब से हासिल लाली लब ...
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Wednesday, 26 July 2017
क्षणिकाएँ
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प्यास नहीं मिटती बारिश में गाँव के गाँव बह रहे तड़प रहे लोग दो बूँद पानी के लिए। ★★★★★★★★★★★ सूखा कहाँ शहर भर गया लबालब पेट ज...
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Tuesday, 25 July 2017
सावन-हायकु
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छेड़ने राग बूँदों से बहकाने आया सावन खिली कलियाँ खुशबु हवाओं की बताने लगी मेंहदी रचे महके तन मन मदमाये है हरी चुड़ियाँ...
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Monday, 24 July 2017
बिन तेरे सावन
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जाओ न सताओ न बरसाओ फुहार साजन बिन क्या सावन बरखा बहार पर्वतों को छुपाकर आँचल में अपने अंबर से धरा तक बादल बन...
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Saturday, 22 July 2017
धूप की कतरनें
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छलछलाए आसमां की आँखों से बरसती बैचेन बूँदें देने लगी मन की खिड़की पर दस्तक कस कर बंद कर ली ,फिर भी, डूबने लगी भीतर ही भीतर पलकें, धुँ...
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Friday, 21 July 2017
आहटें
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दिन के माथे पर बिखर गयी साँझ की लटें स्याह आसमां के चेहरे से नज़रे ही न हटें रात के परों पे उड़ती तितलियाँ जुगनू की अलसाता चाँद बादलों ...
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हे, अतिथि तुम कब जाओगे??
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जलती धरा पर छनकती पानी की बूँदें बुदबुदाने लगी, आस से ताकती घनविहीन आसमां को , पनीली पीली आँखें अब हरी हो जाने लगी , बरखा से पहले उ...
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