मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday 3 August 2017
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
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मन मुस्काओ न छोड़ो आस जीवन के निष्ठुर राहों में बहुतेरे स्वप्न है रूठ गये विधि रचित लेखाओं में है नीड़ नेह के टूट गये प्रेम यज्ञ की त...
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Wednesday 2 August 2017
भरा है दिल
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भरा है दिल,पलकों से बह जायेगा भीगा सा कतरा,दामन में रह जायेगा न बनाओ समन्दर के किनारे घरौंदा आती है लहर, ठोकरों में ढह जायेगा रतजगे...
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दिल पे तुम्हारे
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दिल पे तुम्हारे कुछ तो हक हमारा होगा कोई लम्हा तो याद का तुमको प्यारा होगा कब तलक भटकेगा इश्क की तलाश में दिली ख्वाहिश का कोई तो किना...
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Monday 31 July 2017
लाल मौत
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कल तक अधमरी हो रही सिकुड़ी गिन साँसे ले रही पाकर वर्षा का अमृत जल बलखाती बहकने लगी नदी लाल पानी तटों को तोड़कर राह बस्ती गाँवों पर मोड़क...
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Saturday 29 July 2017
किस गुमान में है
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आप अब तक किस गुमान में है बुलंदी भी वक्त की ढलान में है कदम बेजान हो गये ठोकरों से सफर ज़िदगी का थकान में है घूँट घूँट पीकर कंठ भ...
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Friday 28 July 2017
आँखें
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तुम हो मेरे बता गयी आँखें चुप रहके भी जता गयी आँखें छू गयी किस मासूम अदा से मोम बना पिघला गयी आँखें रात के ख्वाब से हासिल लाली लब ...
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Wednesday 26 July 2017
क्षणिकाएँ
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प्यास नहीं मिटती बारिश में गाँव के गाँव बह रहे तड़प रहे लोग दो बूँद पानी के लिए। ★★★★★★★★★★★ सूखा कहाँ शहर भर गया लबालब पेट ज...
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Tuesday 25 July 2017
सावन-हायकु
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छेड़ने राग बूँदों से बहकाने आया सावन खिली कलियाँ खुशबु हवाओं की बताने लगी मेंहदी रचे महके तन मन मदमाये है हरी चुड़ियाँ...
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