मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 23 December 2017
लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे..
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अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे। दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।। पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम। उम्रे-रवाँ के ख़्व...
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Friday, 22 December 2017
सूरज तुम जग जाओ न
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धुँधला धुँधला लगे है सूरज आज बड़ा अलसाये है दिन चढ़ा देखो न कितना क्यूँ.न ठीक से जागे है छुपा रहा मुखड़े को कैसे ज्यों रजाई स...
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Saturday, 16 December 2017
विधवा
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नियति के क्रूर हाथों ने ला पटका खुशियों से दूर, बहे नयन से अश्रु अविरल पलकें भींगने को मजबूर। भरी कलाई,सिंदूर की रेखा है चौ...
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Tuesday, 12 December 2017
किसी साँझ के किनारे
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किसी साँझ के किनारे पलकें मूँदती हौले से, आसमां से उतरकर पेडों से शाखों से होकर पत्तों का नोकों से फिसलकर, ख़ामोश झील के ...
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Monday, 11 December 2017
क्या हुआ पता नहीं
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क्यों ख़्यालों से कभी ख़्याल तुम्हारा जुदा नहीं, बिन छुये एहसास जगाते हो मौजूदगी तेरी लम्हों में, पाक बंदगी में दिल की तुम ...
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Sunday, 10 December 2017
ख़्यालों में कोई
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शाख़ से टूटने के पहले एक पत्ता मचल रहा है। उड़ता हुआ थका वक्त, आज फिर से बदल रहा है। गुजरते सर्द लम्हों की ख़ामोश शिकायत पर ...
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Friday, 8 December 2017
हाँ मैं ख़्वाब लिखती हूँ
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हाँ,मैं ख़्वाब लिखती हूँ अंतर्मन के परतों में दबे भावों की तुलिका के नोकों से रंग बिखेरकर शब्द देकर मन के छिपे उद्गगार को म...
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सूरज
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भोर की अलगनी पर लटके घटाओं से निकल बूँदें झटके स्वर्ण रथ पर होकर सवार भोर का संजीवन लाता सूरज झुरमुटों की ओट से झाँकता चिड़ि...
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