मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday, 8 August 2018
अजीर्णता नदियों की
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देखते-देखते जलधारा ने लिया रुप विकराल लील गयी पग-पग धरती का जकड़ा काल कराल तट की चट्टानों से टकरा विदीर्ण जीवन पोत हुआ...
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Tuesday, 31 July 2018
क़लम के सिपाही
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क़लम के सिपाही, जाने कहाँ तुम खो गये? है ढूँढती लाचार आँख़ें सपने तुम जो बो गये अन्नदाता अन्न को तरसे मरते कर्ज और भूख से ...
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Sunday, 29 July 2018
क्यूँ जीते जाते
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ब्रह्मांड में धरा का जन्म धरा पर जीवन का अंकुरण प्रकृति के अनुपम उपहारों का क्यूँ मान नहीं कर पाते हैं? जीवन को प्रारब्ध से ज...
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Monday, 23 July 2018
बरखा
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श्यामल नभ पर अंखुआये कारे-कारे बदरीे गाँव फूट रही है धार रसीली सुरभित है बरखा की छाँव डोले पात-पात,ब...
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Wednesday, 18 July 2018
मेरा मन
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ये दर्द कसक दीवानापन ये उलझा बिगड़ा तरसता मन दुनिया से उकताकर भागा तेरे पहलू में आ सुस्ताता मन दो पल को तुम मेरे साथ रहो ...
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Thursday, 12 July 2018
तुम नील गगन में
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आँखों में भर सूरत उजली मैं स्वप्न तुम्हारे बुनती हूँ तुम नील गगन में रहते हो मैं धरा से तुमको गुनती हूँ न चाहत तुमको पाने की...
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Saturday, 7 July 2018
कचरे में ज़िंदगी की तलाश
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अक्सर गली के उस मुहाने पर आकर थम जाते है मेरे पैर जहाँ मुहल्लेभर का कचरा बजबजाते कूड़ेदान के आस-पास बिखरा होता है आवारा कुत्तो...
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Thursday, 5 July 2018
काश! हमें जो.प्यार न होता
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हृदय हीनता के हाथों प्रहर प्रथम प्रहार न होता मान और मनुहार न होता काश! हमेंं जो प्यार न होता अब आयेंगे सोच सोच कर उत्कंठा...
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