Saturday 18 August 2018

भावों का ज्वार


गहराती ,
ढलती शाम
और ये तन्हाई
बादलों से चू कर
 नमी पलकों में भर आई।

गीला मौसम,
गीला आँगन,
गीला मन मतवारा
संझा-बाती,
रोयी पीली,
बहती अविरल धारा।

भावों का ज्वार,
उफनता,
निरर्थक है आवेश,
पारा प्रेम का,
ढुलमुलाता,
नियंत्रित सीमा प्रदेश।

तम वाहिनी साँझ,
मार्गदर्शक 
चमकीला तारा
भावनाओं के नागपाश
 उलझा बटोही पंथ हारा।

नभ की झील,
निर्जन तट पर,
स्वयं का साक्षात्कार
छाया विहीन देह,
 तम में विलीन निराकार।

मौन की शिराओं में,
बस अर्थपूर्ण 
मौन शेष,
आत्मा के कंधे पर,
ढो रहा तन छद्म वेष।

-श्वेता सिन्हा





Tuesday 14 August 2018

आज़ादी

अभी मैं कैसे जश्न मनाऊँ,कहाँ आज़ादी पूरी है,
शब्द स्वप्न है बड़ा सुखद, सच को जीना मजबूरी है।

आज़ादी यह बेशकीमती, भेंट किया हमें वीरों ने,

सत्तावन से सैंतालीस तक ,शीश लिया शमशीरों ने।

साल बहत्तर उमर हो रही,अभी भी चलना सीख  रहा,

दृष्टिभ्रम विकास नाम का,छल जन-मन को दीख रहा।

जाति,धर्म का राग अलाप,भीड़ नियोजित बर्बरता,

नहीं बेटियाँ कहीं सुरक्षित,बस नारों में गूँजित समता।

भूखों मरते लोग आज भी,शर्म कहाँ तुम्हें आती है?

आतंकी की गोली माँ के लाल को कफ़न पिन्हाती है।

आज़ादी क्या होती है पूछो ,कश्मीर के पत्थरबाजों से,

ईमान जहाँ बिकते डर के , कुछ जेहादी शहजादों से।

मन कैसे हो उल्लासित, बंद कमरों में सिमटे त्योहार,

वाक् युद्ध अब नहीं चुनावी, मैले दिल बदले व्यवहार।

आँखें मेरी सपना बुनती, एक नयी सुबह मुस्कायेगी,

शिक्षा की किरण तम को हर कर,भय,भूख से मुक्ति दिलायेंगी

हम सीखेंगे मनुष्यता और मानवता के पुष्प खिलायेंगे।

स्वयं के अहं से ऊपर उठकर भारतवासी कहलायेंगे।

भूल विषमता व्यक्तित्व परे,सब मिलकर अलख जगायेंगे।

कन्या से कश्मीर तक स्वरबद्ध जन-मन-गण दोहरायेंगे।

---श्वेता सिन्हा

sweta sinha जी बधाई हो!,


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Sunday 12 August 2018

दृग है आज सजल


मौन हृदय की घाटी में
दिवा सांझ की पाटी में
बेकल मन बौराया तुम बिन
पल-पल दृग है आज सजल

मन के भावों को भींचता
पग पीव छालों को सींचता
कैसे अनदेखा कर दूँ बोलो?
तेरा सम्मोहन,हिय को खींचता

साँसों की सिहरन भाव भरे
मन-मंथन गहरे घाव करे
पिंजरबंद्ध अकुलाये पाखी
पल-पल दृग है आज सजल

भंवर नयन गह्वर में उलझी
प्रश्न पहेली कभी न सुलझी
क्यों दुखता है पाटल उर का?
मौन तुम्हारा हरपल चुभता

प्राणों का कर दिया समर्पण
झर-झर झरते आँसू अपर्ण
स्मृतियों के पाँव पखारुँ
पल-पल दृग है आज सजल

--श्वेता सिन्हा

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...