Wednesday 22 September 2021

तुमसे प्रेम करते हुए-(२)



(१)

--------------------

भोर की पहली 
किरण फूटने पर 
छलकी थी 
तुम्हारी मासूम मुस्कान की
शीतल बूँदें
जो अटकी हैं अब भी
मेरी पलकों के भीतरी तह में
बड़े जतन से
रख दिया है 
साँसों के समुंदर में
तुम्हारे जाने के बाद 
जब-जब भावों की लहरें 
छूती है मन के किनारों को
जीवन के गर्म रेत पर
बिखरकर इत्र-सा
मुस्कान तुम्हारी
 हर पल को
सोंधा कर जाती है।
-----



(२)
-----
मेरे दिल से तुम्हारे मन तक
जो भावनाओं की नदी बहती है
निर्मल कल-कल,छल-छल,
जिसकी शीतल,मदिर धाराएँ
रह-रह कर छूती है
आत्मिक अनुभूति के 
सुप्त किनारों को
सोचती हूँ 
निर्बाध बहती जलधारा में
जो नेह के 
छोटे-छोटे भँवर हैं
उसमें  
प्रवाहित कर दूँ
हमारे बीच के
अजनबीपन,औपचारिकता
की पोटलियों को।

------------



-श्वेता सिन्हा
(उन दिनों)

Sunday 19 September 2021

नामचीन स्त्रियाँ


नामचीन औरतों की
लुभावनी कहानियाँ

क्या सचमुच
बदल सकती हैं
हाशिये में पड़ी
स्त्री का भविष्य...?

उंगलियों पर
गिनी जा सकने वाली
प्रसिद्ध स्त्रियों को
नहीं जानती
पड़ोस की भाभी,चाची,ताई,
बस्ती की चम्पा,सोमवारी
लिट्टीपाड़ा के बीहड़
में रहनेवाली
मंगली,गुरूवारी
स्पोर्ट्स शू पहने
मंगला हाट से खरीदे
आधुनिक कपड़ों में
सेल्फी खींचकर ही
खुश हो लेती हैं
सयानी होती
पाँचवी तक पढ़ी
बुधनी,सुगनी।

अलग-अलग उम्र में
अलग-अलग पुरूषों के द्वारा
चलायी जाती
चाभीवाले खिलौने जैसी स्त्रियाँ..
टपकते छत के दुख में दुबराती
अपने नाते-रिश्तेदारों का
व्यवहार विश्लेषण करती
नामचीन औरतों के
बनाव,शृंगार
पहनावा-ओढ़ावा पर विमर्श कर
खुश हो लेती हैं।

देहरी के बाहर
कुछ मील में बिखरे
माँ,नानी,दादी के द्वारा
बार-बार दिखाए गये
सपनों को बीनने के क्रम में
ताकभर लेती हैं
देहात के मेले में लगे
रंगीन पोस्टरों की तरह
लगने वाली  स्त्रियों को
कौतुहलवश,
क्योंकि उसे पता है
सपनों के विभिन्न प्रकार में
देहरी के बाहर 
पाँव पसारते ही उसके सपनों को
रिवाज़ के फंदे में 
लटका दिया जाएगा।

नामचीन स्त्रियों से
अनभिज्ञ स्त्रियाँ
नहीं बदल सकती
ढर्रे में चलती
एकरस जीवन में कुछ भी,
नहीं बदल सकती 
समाज की आँखों का पानी,
क्रांति नहीं ला सकती,
फ़ेमिनिज़्म शब्द का
अर्थ भी नहीं समझती
स्त्री आंदोलनों के नारों से
उसे कोई सरोकार नहीं
किंतु 
नामचीन स्त्रियों की भाँति ही
सृष्टि के संचालन का दायित्व
पूरी निष्ठा से निभाती हैं
भूत,वर्तमान और भविष्य 
पोषती हैं
बनकर प्रकृति का 
जिम्मेदार प्रतिरूप।
------------
#श्वेता सिन्हा
१९ सितंबर २०२१

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...