Thursday 22 June 2023

आसान है शायद...



हिंदी,अंग्रेजी, उर्दू,बंग्ला, उड़िया,मराठी
भोजपुरी, मलयाली, तमिल,गुजराती
आदि,इत्यादि ज्ञात,अज्ञात
लिखने वालों की अनगिनत है जमात
कविता,लेख ,कथा,पटकथा,नाटक
विविध विधा के रचनात्मक वाचक
सोचती हूँ अक़्सर
लिखने वालों के लिए भाषा है अनमोल 
या पूँजी है आत्मा के स्वर का संपूर्ण कलोल?
वर्तमान परिदृश्य में...
चमकदार प्रदर्शन की होड़ में
बाज़ारवाद के भौड़े शोर में
सिक्कों के भार से दबी लेखनी, 
आत्मा का बोझ उठाए कौन?
बेड़ियाँ हैं सत्य, उतार फेंकनी,
दुकान-दुकान घूमकर
 लेखन बेचना रद्दी के भाव
जूतों की तल्ली घिसने तक
हड्डियों के भीड़ में पीसने तक 
  आसान नहीं 
शायद सबसे आसान है
अपनी आत्मा को रखना गिरवी 
क्योंकि
स्वार्थी,लोलुप अजब-गजब किरदार
आत्मविहीन स्याही के व्यापारी, ख़रीददार
चाहते हैं रखना बंधक, बुद्धि छाँट
छल,बल से जुटाते रहते हैं चारण और भाट
बिचौलिए बरगलाते हैं मर्म
कठपुतली है जिनके हाथों की
 सत्ता और धर्म...।

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 #श्वेता

 


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मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...