मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Saturday, 22 July 2017
धूप की कतरनें
›
छलछलाए आसमां की आँखों से बरसती बैचेन बूँदें देने लगी मन की खिड़की पर दस्तक कस कर बंद कर ली ,फिर भी, डूबने लगी भीतर ही भीतर पलकें, धुँ...
14 comments:
Friday, 21 July 2017
आहटें
›
दिन के माथे पर बिखर गयी साँझ की लटें स्याह आसमां के चेहरे से नज़रे ही न हटें रात के परों पे उड़ती तितलियाँ जुगनू की अलसाता चाँद बादलों ...
10 comments:
हे, अतिथि तुम कब जाओगे??
›
जलती धरा पर छनकती पानी की बूँदें बुदबुदाने लगी, आस से ताकती घनविहीन आसमां को , पनीली पीली आँखें अब हरी हो जाने लगी , बरखा से पहले उ...
7 comments:
Wednesday, 19 July 2017
ख्यालों का चूल्हा
›
जगे मन के अनगिनत परतों के नीचे जलता रहता है अनवरत ख्यालों का चूल्हा, जिस पर बनते हैंं, पके,अधपके,नमकीन, मीठे,तीखे ,चटपटे ,जले बि...
16 comments:
Tuesday, 18 July 2017
बादल पर्वत पर ठहरे है
›
किरणों के बाल सुनहरे है लुक छिप सूरज के पहरे है कलकल करती जलधाराएँ बादल पर्वत पर ठहरे है धरती पे बिखरी रंगोली सब इन्द्रधनुष के ...
12 comments:
Monday, 17 July 2017
हायकु
›
आवारा मन भटके आस पास बस तेरे ही कोई न सही पर हो सब तुम मानते तो हो तुम्हें सोचूँ न ऐसा कोई पल हो जाना ही नहीं ...
8 comments:
व्यर्थ नहीं हूँ मैं
›
व्यर्थ नहीं हूँ मैं, मुझसे ही तुम्हारा अर्थ है धरा से अंबर तक फैले मेरे आँचल में पनपते है सारे सुनहरे स्वप्न तुम्हारे मुझसे ही तो ...
10 comments:
Friday, 14 July 2017
रात के सितारें
›
अंधेरे छत के कोने में खड़ी आसमान की नीले चादर पर बिछी नन्हें बूटे सितारों को देखती हूँ उड़ते जुगनू के परों पर आधे अधूरे ख्वाहिशें रखती ...
10 comments:
‹
›
Home
View web version