चित्र साभार गूगल
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छू गया नज़र से वो मुझको जगमगा गया
बनके हसीन ख्वाब निगाहों में कोई छा गया
देर तलक साँझ की परछाई रही स्याह सी
चाँद देखो आज खुद ही मेरे छत पे आ गया
चुप बहुत उदास रही राह की वीरानियाँ
वो दीप प्रेम के लिए हर मोड़ को सजा गया
खिले लबों का राज़ क्या लोग पूछने लगे
धड़कनों के गीत वो सरगम कोई सुना गया
डरी डरी सी चाँदनी थी बादलों के शोर से
तोड़ कर के चाँद वो दामन में सब लगा गया
#श्वेता🍁
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छू गया नज़र से वो मुझको जगमगा गया
बनके हसीन ख्वाब निगाहों में कोई छा गया
देर तलक साँझ की परछाई रही स्याह सी
चाँद देखो आज खुद ही मेरे छत पे आ गया
चुप बहुत उदास रही राह की वीरानियाँ
वो दीप प्रेम के लिए हर मोड़ को सजा गया
खिले लबों का राज़ क्या लोग पूछने लगे
धड़कनों के गीत वो सरगम कोई सुना गया
डरी डरी सी चाँदनी थी बादलों के शोर से
तोड़ कर के चाँद वो दामन में सब लगा गया
#श्वेता🍁
😊😊😊😊🙏🙏suprb
ReplyDeleteजी,.बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteएहसासों को बखूबी उतारा है शब्दों में....
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका संजय जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 14 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दी।
Deleteमिलन के उपरांत प्रेम के सागर में उठी मौजों का मनोहारी प्रस्तुतीकरण करती मनमोहक रचना। श्वेता जी का कल्पनालोक मखमली एहसासों का आसमान है। बहुत-बहुत बधाई मन को प्रफुल्लित करती , ताजगी देती रचना के लिए बधाई श्वेता जी। यूं ही लिखते रहिए।
ReplyDeleteआभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी।सही कहा आपने.मेरी कल्पना की दुनिया बहुत अलग है।
Deleteआपके शुभकामनाओं के लिए बहुत आभार।
सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ऋतु जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सुधा दी।
Deleteवाह ! क्या बात है ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका सर।
Deleteबहुत बहुत आभार कविता जी।
ReplyDeleteवाह !लाजबाब रचना प्रिय मन को छू गई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सादर
लाजवाब रचना श्वेता ❤️ 😘
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,क्या बात है !!बहुत खूब!
ReplyDeleteवाह बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसबसे पहले तो ब्लॉग जगत की
ReplyDeleteदेदीप्यमान कवयित्री श्वेता सिन्हा जी को उनकी श्रेष्ठता के लिए करबद्ध नमन🙏🏻🙏🏻🙏🏻।
"मन के पाखी", इस ब्लॉग पर आकर ऐसा प्रतीत होता है कि मन को पंख लग गये हों। भावों के संतुलित झोंकों से लहराता मन, अचानक ही अलंकारों की आभा से देदीप्यमान हो उठता है।
इस रचना में भी एक अलग अंदाज़ है...
देर तलक साँझ की परछाई रही स्याह सी
चाँद देखो आज खुद ही मेरे छत पे आ गया
क्या ग़ज़ब का अंदाज़-ए-बयाँ है। वाह।
आज का यह अंक संभवतः मैं नहीं पढ़ पाता, इस बेमिसाल गीतिकाव्यबद्ध अंक के बारे में अवगत कराने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया श्वेता जी। नमन।
बहुत ही लाजवाब अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteआपकी रचनाएं पढ़कर निशब्द हो जाती हूँ मैं प्रतिक्रिया हेतु हर शब्द बौना सा लगता है...
इसीलिये बस लाजवाब और वाहवाह...
ढेर सारी शुभकामनाएं ....