सभ्यताओं की नींव के आधार
इतिहास के अज्ञात शिल्पकार,
चलो उनके लिए गीत गुनगुनाये
मजदूर दिवस सम्मान से मनाये।
इतिहास के अज्ञात शिल्पकार,
चलो उनके लिए गीत गुनगुनाये
मजदूर दिवस सम्मान से मनाये।
पसीने से विकास के बाग वो सींचते
मेहनत से राष्ट्र के पहियों को खींचते,
सपनों के आँगन में खुशियाँ है बोते
जागे हो वो तो हम बेफ्रिक्री में सोते,
उनके लिए मुस्कानों का हार बनाये
मजदूर दिवस सम्मान से मनाये ।
श्रम, बल संस्कृति के कारीगर,श्रमिक हैं
दृढ़,कर्मठ उन्नति-पथ के चरण क्रमिक हैं,
अवरोधों के सामने फौलाद बन डट जाते हैं
विपदा के बादल पलभर में छँट जाते हैं
आओ उन्हें दुआओं की बारिश में भींगाये
मजदूर दिवस सम्मान से मनाये ।
जाति,धर्म,देश की सीमाओं से परे
चेहरे अलग,एक ही पहचान में गढ़े,
सुचारू दिनचर्या उनके साथ औ' विश्वास से
रंग भरते हमारे दैनिक जीवन के कैनवास में
आभार कहे, इन्हें गर्वोनुभूति कराये
मजदूर दिवस सम्मान से मनाये|
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- श्वेता सिन्हा
१ मई २०२२
पसीने से विकास के बाग वो सींचते
ReplyDeleteमेहनत से राष्ट्र के पहियों को खींचते,
सपनों के आँगन में खुशियाँ है बोते
जागे हो वो तो हम बेफ्रिक्री में सोते,
उनके लिए मुस्कानों का हार बनाये
मजदूर दिवस सम्मान से मनाये ।
बहुत सुंदर
सादर..
जाति,धर्म,देश की सीमाओं से परे
ReplyDeleteचेहरे अलग,एक ही पहचान में गढ़े,
सुचारू दिनचर्या उनके साथ औ' विश्वास से
रंग भरते हमारे दैनिक जीवन के कैनवास में
आभार कहे, इन्हें गर्वोनुभूति कराये
मजदूर दिवस सम्मान से मनाये|
मजदूरों के सम्मान में बहुत ही सुंदर रचना, प्रिय स्वेता दी।
मज़दूर दिवस सम्मान से मनाने की बहुत खूबसूरत ख्वाहिश ।
ReplyDeleteदोनों चित्र कमाल के बनाये हैं । प्रांजल को स्नेहाशीष ।
प्रिय श्वेता,एक श्रमिक के सम्मान में बहुत सुन्दर और भावपूर्ण गीत!👌👌👌
ReplyDeleteसच कहूँ तो कथित साधन-सम्पन्न समाज बहुत स्वार्थी है, जो एक श्रमिक के श्रम का उचित मूल्यांकन नहीं करता ।ऊँची अट्टालिकाओं को आकार देते ये मजदूर कभी नहीं सोचते कि इतनी इमारतों में एक छत उनके लिए क्यों मयस्सर नहीं!! इन्हें अंतर नहीं पड़ता कि उसे किस धर्म और जाति को अपनी सेवायें देनी है।सर्वस्व समर्पित भाव से कर्म ही उसका स्वभाव और संस्कार है।निश्चित रूप से हम उनके लिए कुछ और भले कुछ ना भी कर पाएँ ,सम्मान के गीत लिख उन्हें गुनगुना तो सकते हैं।सभी श्रमवीरों को कोटि-कोटि नमन !
जाति,धर्म,देश की सीमाओं से परे
ReplyDeleteचेहरे अलग,एक ही पहचान में गढ़े,
सुचारू दिनचर्या उनके साथ औ' विश्वास से
रंग भरते हमारे दैनिक जीवन के कैनवास में
आभार कहे, इन्हें गर्वोनुभूति कराये
मजदूर दिवस सम्मान से मनाये|👌👌👌👌
साथ हीमें नन्ही गुड्डू के चित्र कमाल के हैं।उसकी नन्ही कल्पनायेँ अद्भूत हैं! रंगों का समायोजन और दृश्य का प्रस्तुतिकरण मन मोह गया।गुड्डू को प्यार और आशीष।❤❤🌺🌺माँ सरस्वती की कृपा उस पर सदैव रहे यही कामना है
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 02 मई 2022 को 'इन्हीं साँसों के बल कल जीतने की लड़ाई जारी है' (चर्चा अंक 4418) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर ! श्वेता तुम्हारी यह कविता हम सब आज गुनगुनाएंगे लेकिन कल तक इसमें निहित सन्देश के साथ-साथ इसे और मज़दूरों को हम भूल जाएंगे.
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर भावना से ओत प्रोत रचना 👏👏👌
ReplyDeleteमजदूर दिवस पर सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआ श्वेता जी, मजदूरों के आत्मसम्मान में लिखी गई सुंदर रचना!
ReplyDeleteश्रम, बल संस्कृति के कारीगर,श्रमिक हैं
दृढ़,कर्मठ उन्नति-पथ के चरण क्रमिक हैं,
साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
पूंजीवादी मानसिकता ने सर्वहारा वर्ग का आर्थिक शोषण तो किया ही है,मानसिक शोषण भी किया है.
ReplyDeleteमजदूरों के मानसिक शोषण और उनके हितों की पैरवी करती अर्थपूर्ण और भावपूर्ण रचना.
कमाल का सृजन
जाति,धर्म,देश की सीमाओं से परे
ReplyDeleteचेहरे अलग,एक ही पहचान में गढ़े,
सुचारू दिनचर्या उनके साथ औ' विश्वास से
रंग भरते हमारे दैनिक जीवन के कैनवास में
आभार कहे, इन्हें गर्वोनुभूति कराये
मजदूर दिवस सम्मान से मनाये|
..श्रमिक जीवन का यथार्थ की अनुभूति कराती एवम उनकी महत्ता का अहसास कराती सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई और आभार प्रिय श्वेता जी ।
देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा ।
श्रमिक दिवस पर सचमुच श्रमिकों के सम्मान में मन से नि:सृत सृजन।
ReplyDeleteसुंदर संवेदनाओं से ओतप्रोत।
प्रांजल बिटुवा के चित्र लाजवाब उसे मेरी और से शुभाशीष, शुभकामनाएं।
श्रमिक दिवस पर श्रमिकों के सम्मान में लिखी गई एक बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteदुःख इस बात का है कि देश का विकास जो करते हैं उनका अपना विकास करने का उन्हें कोई अवसर नहीं दिया जाता। नाम भर का रह गया है मजदूर दिवस।
प्रांजल की चित्रकला बहुत निखरती जा रही है। उसे सस्नेह आशीष।
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia
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