Saturday 24 June 2017

उदासी तुम्हारी

पल पल तुझको खो जीकर
बूँद बूँद तुम्हें हृदय से पीकर
एहसास तुम्हारा अंजुरी में भर
अनकहे तुम्हारी पीड़ा को छूकर
इन अदृश्य हवाओं में घुले
तुम्हारें श्वासों के मध्म स्पंदन को
महसूस कर सकती हूँ।

निर्विकार , निर्निमेष कृत्रिम
आवरण में लिपटकर हंसते
कागज के पुष्प सदृश चमकीले
हिमशिला का कवच पहन
अन्तर्मन के ताप से पिघल
भीतर ही भीतर दरकते
पनीले आसमान सदृश बोझिल
तुम्हारी गीली मुस्कान को
महसूस कर सकती हूँ।

कर्म की तन्मता में रत दिन रात
इच्छाओं के भँवर में उलझे मन
यंत्रचालित तन पे ओढ़कर कर
एक परत गाढ़ी तृप्ति का लबादा,
अपनों की सुख के साज पर
रूँधे गीतों के टूटते तार बाँधकर,
कर्णप्रिय रागों को सुनाकर
मिथ्या में झूमते उदासी को तुम्हारी
महसूस कर सकती हूँ।
       #श्वेता🍁



Friday 23 June 2017

एक दिन

खुद को दिल में तेरे छोड़ के चले जायेगे एक दिन
तुम न चाहो तो भी  बेसबब याद आयेगे एक दिन

जब भी कोई तेरे खुशियों की दुआ माँगेगा रब से
फूल मन्नत के हो तेरे दामन में मुसकायेगे एक दिन

अंधेरी रातों में जब तेरा साया भी दिखलाई न देगा
बनके  इल्मे ए चिरां ठोकरों से बचायेगे एक दिन

तू न देखना चाहे मिरी ओर कोई बात नहीं,मेरे सनम
आईने दिल अक्स तेरा बनके नज़र आयेगे एक दिन

तेरी जिद तेरी बेरूखी इश्क में जो मिला,मंजूर मुझे
मेरी तड़पती आहें तुझको बहुत रूलायेगे एक दिन

आज तुम जा रहे हो मुँह मोड़कर राहों से मेरे घर के
दोगे सदा फिर कभी खाली ही लौटके आयेगे एक दिन

      #श्वेता🍁


Thursday 22 June 2017

रिश्ते

रिश्ते बाँधे नहीं जा सकते
बस छुये जा सकते है
नेह के मोहक एहसासों से
स्पर्श किये जा सकते है
शब्दों के कोमल उद्गारों से
रिश्ते दरख्त नहीं होते है
लताएँ होती है जिन्हें
सहारा चाहिए होता है
भरोसे के सबल खूँटों का
जिस पर वो निश्चिंत होकर
पसर सके मनचाहे आकार में
रिश्ते तुलसी के बिरवे सरीखे है
जिन्हे प्यार और सम्मान
के जल से सींचना होता है
तभी पत्तों से झरते है आशीष
चुभते काँटों से चंद बातों को
अनदेखा करने से ही
खिलते है महकते रिश्तों के गुलाब
सुवासित करते है घर आँगन
बाती बन कर रिश्तों के दीये में
जलना पड़ता है अस्तित्व भूल कर
तभी प्रकाश स्नेह का दिपदिपाता है
रिश्ते ज़बान की तलवार से नहीं
महीन भावों के सूई से जोड़े जाते है
जिससे अटूट बंधन बनता है
पूजा के मौली जैसे ,
रिश्ते हवा या जल की तरह
बस तन को जीवित रखने के
नहीं होते है,
रिश्ते मन होते है जिससे
जीवन का एहसास होता है।

       #श्वेता🍁



बरखा ऋतु

तपती प्यासी धरा की
देख व्यथित अकुलाहट
भर भर आये नयन मेघ के
बूँद बूद कर टपके नभ से
थिरके डाल , पात शाखों पे
टप टप टिप टिप पट पट
राग मल्हार झूम कर गाये है
पवन के झोंकें से उड़कर
कली फूल संग खिलखिलाए
चूम धरा का प्यासा आँचल
माटी के कण कण महकाये है
उदास सरित के प्रांगण में
बूँदों की गूँजें किलकारी
मौसम ने ली अंगड़ाई अब तो
मनमोहक बरखा ऋतु आयी है।

कुसुम पातों में रंग भरने को
जीवन अमृत जल धरने को
अन्नपूर्णा धरा को करने को
खुशियाँ बूँदों में बाँध के लायी है
पनीले नभ के रोआँसें मुखड़े
कारे बादल के लहराते केशों में
कौंधे तड़कती कटीली मुस्कान
पर्वतशिख का आलिंगन करते घन
घाटी में रसधार बन बहने को
देने को नवजीवन जग को
संजीवनी बूटी ले आयी है
बाँह पसारें पलकें मूँदे कर
मदिर रस का आस्वादन कर लो
भर कर अंजुरी में मधुरस
भींगो लो तन मन पावन कर लो
छप छप छुम छुम रागिनी पग में
रूनझुन पाजेब पहनाने को
बूँदों का श्रृंगार ले आयी है
जल तरंग के मादक सप्तक से
झंकृत प्रकृति को करने को
जीवनदायी बरखा ऋतु आयी है।

      #श्वेता🍁

Tuesday 20 June 2017

चुपके से

चुपके से उतरे दिल में हंसी लम्हात दे गये
पलकें अभी भी है भरी वो  बरसात दे गये

भर लिए ख्वाब आँखों मे न पूछा तुमसे
चंद यादों के बदले दर्द  की सौगात दे गये

एक नज़र प्यार की चाहत ज्यादा तो न थी
खामोश रहे  तुम उलझे से ख्यालात दे गये

दिल मे गहरे चढ गये रंग तेरे  एहसासों के
मिटाए से न मिटे महकते से जज़्बात दे गये

हसरते दिल की अधूरी है न पूरी होगी कभी
गर्म आहों में लिपटी तन्हा सर्द  रात दे गये

    #श्वेता🍁

Sunday 18 June 2017

मेरी बिटिया के पापा


कल रात को अचानक नींद खुल गयी, बेड पर तुम्हें न पाकर मिचमिचाते आँखों से सिरहाने रखा फोन टटोलने कर टाईम देखा तो  1:45 a.m हो रहे थे।बेडरूम के भिड़काये दरवाजों और परदों के नीचे से मद्धिम रोशनी आ रही थी , शायद तुम ड्राईंंग रूम में हो, आश्चर्य और चिंता के मिले जुले भाव ने मेरी नींद उड़ा दी। जाकर देखा तो तुम सिर झुकाये एक कॉपी में कुछ लिख रहे थे।इतनी तन्मयता से कि मेरी आहट भी न सुनी।
ओह्ह्ह....,ये तो बिटिया की इंगलिश  लिट्रेचर की कॉपी है! तुम उसमें कुछ करैक्शन कर रहे थे।कल उसने एक निबंध लिखा था बिना किसी की सहायता के और तुमसे पढ़ने को कहा था , तब तुमने उससे वादा किया था आज जरूर पढ़ोगे, पर तुम्हारे व्यस्त दिनचर्या की वजह से आज भी तुम लेट ही आये और निबंध नहीं चेक कर पाये थे। मैंने धीरे से तुम्हारा कंधा छुआ तो तुमने चौंक कर देखा और शांत , हौले से  मुस्कुराते हुये कहा कि ' उसने इतनी मेहनत से खुद से कुछ लिखा है अगर कल पर टाल देता तो वो निराश हो जाती न।'
ऐसी एक नहीं अनगिनत घटनाएँ और छोटी छोटी बातें है बिटिया के लिए तुम्हारा असीम प्यार अपने दायित्व के साथ क़दमताल करता हुआ दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है। उसके जन्म के बाद से ही एक पिता के रूप में  तुमने हर बार विस्मत किया है।
मुझे अच्छी तरह याद है बिटिया के जन्म के बाद पहली बार जब तुमने उसे छुआ था तुम्हारी आँखें भींग गयी थी आनंदविभोर उसकी उंगली थामें तुम तब तक बैठे रहे जब तक अस्पताल के सुरक्षा कर्मियों ने आकर जाने को नहीं कहा। उसकी एक छींक पर मुझे लाखों हिदायतें देना,उसकी तबियत खराब होने पर रात भर मेरे साथ जागना बिना नींद की परवाह किये जबकि मैं जानती हूँ 5-6  घंटों से ज्यादा सोने के लिए कभी तुम्हारे पास वक्त नहीं होता। उसकी पहले जन्मदिन से ही भविष्य के सपनों के पूरा करने के लिए जाने क्या-क्या योजनाएँँ बना रहे। बिटिया भी तो उसकी कोई बात बिना पापा को बताये पूरी कब होती है। जितना भी थके हुए रहो तुम पर जब तक दिन भर की सारी बातें न कह ले तुम्हें दुलार न ले सोती ही नहीं, तुम्हारे इंतज़ार में छत से अनगिनत बार तुम्हारी गाड़ी झाँक आती है। मम्मा पा फोन किये थे क्या उनको लेट होगा? अब तक आये क्यों नहीं..? तुम्हारे आने के समय में देर हो तो अपना फेवरेट टी.वी. शो भूलकर सौ बार सवाल करती रहती है।
जब तुम दोनों मिलकर मेरी हँसी उड़ाते मुझे चिढ़ाते हो,खिलखिलाते हो... भले ही मैं चिड़चिडाऊँ पर मन को मिलता असीम आनंद शब्दों म़े बता पाना मुश्किल है।

तुम दोनों का ये प्यार देखकर मेरे पापा के प्रति मेरा प्यार और गहरा हो जाता है, जो भावनाएँ मैं नहीं समझ पाती थी उनकी, अब सारी बातें समझने लगी हूँ उन सारे पलों को फिर से जीने लगी हूँ।
पापा को कभी नहीं बता पायी मैं उनके प्रति मेरी भावनाएँ, पर आज सोच रही हूँ कि इस बार उनसे जाकर जरूर कहूँगी कि उनको मैं बहुत प्यार करती हूँ।

तुम्हें अनेको धन्यवाद देना था ,नहीं तुम्हारी बेटी के प्रति तुम्हारे प्यार के लिए नहीं बल्कि मेरे मेरे पापा के अनकहे शब्दों को उनकी अव्यक्त भावनाओं को तुम्हारे द्वारा समझ पाने के लिए।

  #श्वेता सिन्हा

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...